Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 507
________________ जलयोगा। तदा वर्षति पर्जन्यो जीवदृष्टौ न संशयः ॥९॥ शुक्र चन्द्रसमायुक्ते. भौमे वा चन्द्रसंयुते । उहन्धना दिशः सर्वाः जलयोगस्तदा महान् ॥६॥ अप्रतो वा स्थिताः सौम्याः ऋराणां तु परस्परम् । वदते सलिल भूरि न तोयं स्थाविपर्यये ॥६८.. एकराशिगतो जीवः सूर्येण सह वर्षति। . यावन्नास्तमनं याति योगे नाम्मो ज्ञजीवयोः ॥६॥ उन्मार्गगमनं कृत्वा यदा शुक्रं त्यजेद् बुधः। तदा वर्षति पर्जन्यो दिनानि पञ्च सप्त वा ॥१०॥ कर्कटे तु प्रविशन्तं सूर्यं पश्येद् यदा गुरुः ।... पादोनं पूर्णदृष्ट्या वा तत्र काले महाजलम् ॥१०॥ उदयेऽस्तंगमे चेत् स्थाज्जीवदृष्टो यदा ग्रहः । पादोनं पूर्णदृष्ट्या था तदा वर्षति नान्यथा ॥१०२॥ यदि शुक्र मंगल और शनि ये तीनों एक राशि पर हो और उन पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो मेव बरसता है इसमें संशय नहीं ॥६६॥ शुक के साथ चंद्रमा हो या मंगलके साथ चंद्रमा हो और समस्त दिशा वादल समेत हो तो महान् जलयोग होता है ॥ ६७ ॥ कूर ग्राहोंके आगे शुभ प्रह स्थित हों तो जल बहुत बरसे और इससे विपरीत होतो वर्षा न हो ॥६८ ॥ सूर्यके साथ एक राशि पर बृहस्पति हो तो वर्षा हो जब तक बुध और बृहस्पति भरत न हो और यह योग रहें ॥ ६६ ॥ तथा बुध वक्री होकर शुक्रको त्यागे तब पांच या सात दिन वर्षा हो ॥ १० ॥ यदि कर्कराशि में प्रवेश करता हुआ सूर्य को बृहस्पति पौन या पूर्ण दृष्टि से देखे तो महावर्षा हो ॥१०१॥ उद्य और अस्त होते समय कोई भी . ग्रह बृहस्पतिसे पौन या पूर्ण दृष्टिसे देख जाय तो वर्षा हो अन्यथा न हो ॥९०२ ॥ सब मैडलों में स्थित ग्राह पौन या पूर्ण दृष्टिसे बृहस्पति देखे "Aho Shrutgyanam"

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