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मेघमदोव
चिद्वैरेभिः सुकालो जगति शुभकरो वर्षणे कृत्तिकायाम्। ६०। रात्रौ संक्रान्तिरार्द्रायामप्यगस्त्योदयो यदा-1
तदा वर्षे सुभिक्षं स्याद विपरीते विपर्ययः ॥९१॥ इति । अथ जलयोग:
अष्टौ न युतौ कुरै ईशुक्रावेकराशिगौ । जीवदृष्टौ विशेषेण महावृष्टिस्तदा भवेत् ||१२|| ज्ञजीवावेकराशिस्थौ क्रूरदृष्टिर्विवर्जिती । शुक्रदृष्टौ विशेषेण कुरुते वृष्टिमुत्तमाम् ॥६३॥ जीवशुक्रौ यदा युक्तौ क्रूरेणापि विलोकितौ । बुधदृष्टौ महावृष्टि कुरुते जलयोगतः ॥६४॥ गुरुर्बुधा दानवेन्द्रा एकराशिगत त्रयम् । अदृष्ट क्रूर खेचरैर्महावर्षाविधायिकम् ॥ ६५ ॥ यदा शुक्रश्च भौमश्च मन्दश्चक राशिगः । युक्त हो तथा कृतिकामें वर्षा हो, इत्यादि शुभ चिह्न हो तो जगत्में सुकाल होता है ॥ ६० ॥ यदि रात्रि के समय सूर्यका आर्द्रा में संक्रमण हो और अगस्ति का उदय हो तो वर्ष में सुभिक्ष होता है और इससे विपरीत हो तो विपरीत याने दुष्काल होता है ॥ ६१ ॥
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बुध और शुक ये दोनों एक राशि पर हो किंतु क्रूर ग्रह साथ न हो तथा उनकी दृष्टि भी न हो और बृहस्पति की दृष्टि हो तो विशेष करके महा वर्षा होती है ॥६२॥ बुध और शुक एक राशि पर हो और क्रूर ग्रह की दृष्टि से रहित हो किंतु शुक्र की वृष्टि हो तो विशेष कर के उत्तम वर्षा होती है ॥ ६३ ॥ बृहस्पति और शुक्र एक साथ हो और क्रूर ग्रह से देखे जाते हो तथा बुध की भी दृष्टि हो ऐसा जलयोग महा वर्षा करता है ॥ ६४ ॥ गुरु बुध और शुक्र ये तीनों एक राशि पर हो और उन पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि न हो तो महा वर्षा कारक होते हैं ॥ ६५॥
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"Aho Shrutgyanam"