Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 508
________________ (४८८) मेघमहोदये मण्डलेषु च सर्वेषु संक्रमान्तं यदा ग्रहः । पादोनं पूर्णदृष्ट्या वा गुरुमन्ये जलावहम् ॥ १०३ ॥ शनौ शुक्रेऽल्पवृष्टिः स्यान्न सस्यानि भवन्ति च । वकोत्तीर्णाः शुभाः क्रूरा जीवो वऋगतः शुभः ॥ १०४॥ अतिचारगताः क्रूराः स्वल्पवृष्टिप्रदायकाः । सौम्या यदा वक्रतास्तदा वृष्टिविधायिनः ॥ १०५ ॥ सिंहे कन्यायां तुलायां यास्यते च यदा गुरुः । एकाकीग्रहयुक्तो वा वर्षत्येव महाजलम् ॥ १०६ ॥ शुक्रस्य यदि भौमेन यदि स्यात् समसप्तकम् । दृष्टिर्मासे तदा काले तथैव शनिजीवयोः ॥ १०७॥ क्रूराणां सह सौम्यैश्च यदि स्यात् समसप्तकम् । अनावृष्टिस्तदा ज्ञेया लोकपीडा महत्यपि ॥ १०८ ॥ इति ॥ अथ सूर्यचन्द्रकृतजलयोगः- - रेवत्यादिश्चतुष्कं च रौद्रं पञ्चकमेव च । तो जल वर्षा हो ॥ १०३ || शनि शुक्र एक राशि पर हो तो वर्षा थोड़ी हो और धान्य न हो । क्रूर ग्रह की हो चूकने बाद शुभ होते है और बृहस्पति वक्री हो तो शुभ होता है ॥ १०४ ॥ क्रूर ग्रह यदि अतिचारी हो तो थोड़ी वर्षा करनेवाले होते हैं । सौम्यग्रह यदि वक्री हो तो अधिक दृष्टि करनेवाले होते हैं ॥ १०५ ॥ यदि सिंह कन्या और तुला राशि पर बृहस्पति हो और साथ कोई एक प्रह हो तो महावर्षा होती है ॥ १०६ ॥ यदि मंगल के साथ शुक्र का समसप्तक अर्थात् शुक्रसे सातवीं राशि पर मंगल हो या मंगल से सातवीं राशि पर शुक्र हो तो एक महीने वर्षा हो । इसी तरह: शनि और बृहस्पति का समसप्तक हो तो भी वर्षा हो ॥ १०७॥ यदि शुभ ग्रहों के साथ कूरों का समसप्तक हो तो मनावृष्टि तथा लोकपीडा हो । १०८ । रेवती आदि चार, आर्द्रा- मादि पांच, पूर्वाषाढा मादि चार चौर - तीर्मो "Aho Shrutgyanam"

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