Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 502
________________ (४८२) मेघमहोदये तदनपृष्टगे खेटे बल राशिकान मतम ॥७४॥ उच्चबलम्उच्चांशस्थे...बलं पूर्ण नीचांशस्थे बलं खिलम् । त्रैराशिकवशाद् ज्ञेयमन्तरे तु बलं बुधैः ।।७५॥ स्वामिवशाद् वेधफलनिर्णयः-- एवं.देशाधिनाथा ये ते वेधकग्रहं प्रति । सुहृदः शत्रवो मध्याश्चिन्तनीयाः प्रयत्नतः ॥७६।। स्वमित्रसमशत्रूणां विध्यन् देशादिकं क्रमात् । दुष्टं दुष्टग्रहः कुर्यादेकछित्रिचतुष्पदे ।।७।। स्वमित्रसमशत्रूणां विध्यन् देशादिकं क्रमात् । शुभग्रहः शुभं दत्त चतुस्त्रिद्वयेकपादजम् ।।७८॥ पर वक्री को या उदयका मध्य फल जानना, इस समय ग्रह पूर्ण बलवान् होता है। उस मध्य कालसे जितना आगे या पीछे रहे उतना न्यून बल राशिक गणितसे जानना ॥७४॥ ग्रह उच्च राशि में परम उच्च अंश पर हो तो पूर्ण बल, तथा नीच राशि में परम नीच अंश पर हो तो बलहीन जानना, और इन दोनोंके बीच में कहीं हो तो उसका बल विद्वानोंको. त्रैराशिक गणितसे जानना चाहिये।७५॥ इसी तरह जो, देश आदिके स्वामी ग्रह कहे हैं, वे ग्रह अपने २ देश मादि को वने वाले ग्राह के पति मित्र शत्रु या सम इनमें से क्या है ? इसका यत्न से विचार करें ॥ ७६ ॥ देश आदि का वेध करनेवाला ग्रह अशुभ हो तो क्रमसे अशुभ फल देता है। स्वामी स्वयं वेधकर्ता हो तो एक पार्द, बधकता मित्रग्राह हो तो दो पाद, समान ग्रह हो तो तीन पाद, और शत्रु ग्रह हो तो पूर्ण फल करता है ॥ ७७ ॥ देश आदि का वेध करनेवाला ग्रह शुभ हो तो क्रमसे शुभ फल देता है । स्वामी स्वयं मेध "Aho Shrutgyanam"

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