Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 501
________________ सर्वतोभद्रचक्रम् श्रीग्रहौ सितशीतांशू सौरिसोम्यौ नपुंसकौ ॥७०॥ सितेन्द्र सितवर्णेशौ रक्तेशौ भीमभास्करी । पीतेशौ सगुरु कृष्णनाथाः केतुतमोऽर्कजाः ।।७१४ वशात् स्वामिनिर्णय: ग्रहो वकोदयो यो यदा स्याद् बलाधिकः । देशादीनां सः एवैकः स्वामी खेटस्तदा मतः ॥७२॥ क्षेत्रबलम् स्वक्षेत्रस्थे बलं पूर्ण पादोनं मित्रभे गृहे । अ समगृहे ज्ञेयं पादं शत्रुग्रहे स्थिते ॥७३॥ चक्रोदय बलम् - वक्रोदयाहमाना पूर्णवीर्यो ग्रहो भवेत् । (४१) राहु केतु सूर्य बृहस्पति और मंगल ये पुरुष संज्ञा वाले ग्रह हैं । शुक और चंद्रमा ये दोनों स्त्री संज्ञावाले ग्रह हैं । तथा शनि और बुध ये दोनों नपुंसक संज्ञावाले ग्रह हैं ॥७०॥ श्वेत वर्णके स्वामी- शुक्र और चंद्रमा, [क्त वर्ण के स्वामी मंगल और सूर्य, पीत वर्ण के स्वामी बुध और गुरु; तथा कृष्ण वर्ण के स्वामी केतु राहु और शनि हैं ॥७१॥ उपर जो देश आदि के स्वामी ग्रह कहे हैं, इनमें से जो मह, वक, उदय, उच्च और क्षेत्र इन चार प्रकारके बलों में से जो अधिक बलवाला हो, वही एक ग्रह उन देशादिक का स्वामी होता है अर्थात् जिस के दो तीन आदि ग्रह स्वामी होते हैं इनमें जो बलवान् हो वह स्वामी माना जाता है ॥७२॥ ग्रह अपनी राशि पर हो तो पूर्ण (चार पाद), मित्रकी राशि पर हों तो तीन पाद, सम ग्रहकी राशि पर हो तो भाधा (दो पाद), और शत्रु ग्रहकी राशि पर हो तो एक पाद बल होता है ॥ ७३ ॥ , जिसने दिन प्रह वक्री या उदय रहें, इसका आधा समय बीत जाने " Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532