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मेमहोदये
पुनर्वस्वोः स्वर्णरूत कर्पास युगन्धरी । कुसुम्भः श्यामकौशेयं मासयुग्मोत्तराऽसुखम् ||३९|| पुष्ये स्वर्णघृतं रूप्यं शालिसौंचलसर्वपाः । सर्जिकातैलहिंग्वादि याम्पपीडाष्टमासिकी ॥४०॥ आश्लेषायां च मञ्जिष्ठाऽऽर्दक गोधूमठिकाः । मरिचकोद्रवाः शालि-र्मासिक पत्रिमासुखम् ॥४१॥ मघायां तिलतैलाज्य प्रवालचणकातसी । मुद्राः कर्दक्षिणस्यां विग्रहश्चाष्टमासिकः ॥४२॥ प्रूफायां कम्बलोण दि-युगन्धरी तिलास्तथा । रजकं वस्तुपल्याणं याम्यपीडाष्टमासिकी ||४३|| 'उफायां माषमुद्गाद्यं तन्दुलाः कोद्रवाः पुनः । * सैन्धवं लशुनं सज्जिर्मासयुग्मोत्तरा व्यथा ॥४४॥ हस्ते श्रीखण्ड कर्पूरदेवकाष्ठागरुस्तथा ।
रक्तचन्दनकन्दाद्यं मासयुग्मोत्तराऽसुखम् ॥४५॥
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पश्चिम दिशा में एक महीना दुःख हो ॥३८॥ पुनर्वसु के वेधसे सोना, रूई, कपास, जूमार, कुसुंभ और कृष्ण रेशमी वस्त्र का वेव तथा दो महीने उत्तर दिशा में अशुभ रहें ॥ ३६ ॥ पूयमें सोना, वी, चांदी, चावल, शोचर लोन, सरसों, सजीवार तेल, हिंग, तथा आठ महीने दक्षिण दिशा में पीडा रहें ।। ४० ॥ आश्लेषा मँजीठ आदा गेहूँ सोंठ मिर्च कोद्रवा और चावल तथा पश्चिममें एक मास दुःख रहें ॥४१॥ मघामें तिल, तेल, घी, प्रवाल (मूंगा), चने, अलसी, मूंग, और कंगु तथा दक्षिण दिशामें आठ महीने -विग्रह हो ॥४२॥ पूर्वाफाल्गुनी में कंबल, रेशमी वस्त्र, ज्वार, तिल, चांदी और दक्षिणदिशा में आठ महीने पीडा ॥ ४३ ॥ उत्तराफाल्गुनी में उडद मूंग चावले कोद्रव, सैंचय, लसून, सज्जी, और उत्तर में दो महीने पीडा ॥ ४४ ॥ हस्तमें चंदन, कपूर, देवदार, अगर, रक्तचंदन चंद आदि और
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