________________
(४७४):
भ
रे
उ
पू
JG
घ
A.
ल
च
द
स
ग
H
रो
A
ल
मेष
長
कुंभ
मृ
18
व
वृष
宙
abs
मकर
約
मेघमहोदये
W
श्रा पु
क
नंदा
पूर्ण
मिथुन कर्क श्र
Abs
I
hot
3
"Aho Shrutgyanam"
पु
4
ड
तुला
ए
官
ऊ
म
2
प
र
สี
4
भ
भ
पू
उ
ह
Acala
善
近
सांमुखी मध्यचारे च ज्ञेया भौमादिपञ्चके ॥३॥
राहुकेतू सदा वक्रौ शीघ्रगौ चन्द्रभास्करौ ।
गतेरेकस्वभावत्वा-देषां दृष्टिश्रयं सदा ||४||
सर्वतोभद्रचक्रमें जिस नक्षत्र पर ग्रह स्थित हो, उस नक्षत्र के स्थानसे मह दृष्टि के अनुसार वाम (बाय) दक्षिण तथा सम्मुख, ऐसे तीन प्रकार के वेध होते हैं भ र्थात् ग्रह की दृष्टि जिस तरफ हो उस तरफ वेध होता है ॥ १॥ ग्रहों का वेव गजेन्द्र के दांत का संस्थान की जैसे दो तरफ याने बायीं और दक्षिणके वेधसे राशि, अक्षर स्वर तिथि और नक्षत्र ये पांचों ही वेधे जाते हैं । किंतु सम्मुख रही हुई नाशिका का अग्रभाग की जैसे केवल सामने का एक नक्षत्र ही बेधा जाता है, ऐसा कईएक भाचार्यों का मत
चि
स्वा
वि
Id