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मेघमहोदये प्रकृतम्-सर्वनक्षत्रमध्ये तु रोहिणी पतिता त्रिके । सौम्ययोगे शुभैव स्यादशुभाः ऋरयोगतः ॥२५!! अतिवृष्टिरनावृष्टिमूषकाः शलभाः शुकाः । स्वचक्रं परचक्रं च मृगशीर्षे द्विकैरिदम् ॥२६॥ श्रााप्रवेश:..सूर्योदये रोगकरी स्मृतार्दा, घटीद्धये विग्रहरोगयोगः । मध्याहकाले कृषिनाशनाय,धान्यं महर्घ च तृणस्य नाशः।२७। सन्ध्यास्थितार्दा कुरुते सुभिक्ष,रात्रौ स्थिता सर्वसुखायलोके। भोगं प्रदत्ते खलुमध्यरात्रे, पूर्व मुखं दुःखमतोऽपरात्रे ।२८॥ "मिगसिर वाय न वाइया, अह न घूठा मेह । इम जाणे वो भडली, वरसइ दीधौ छेह" ॥२९॥ नक्षत्रद्वार:----- भघार्कदिवसं त्यक्त्वा सर्वनक्षत्रवर्षणम् ।
सब नक्षत्रों के मध्यमें रोहिणी त्रिकमें हो और शुभग्रहों का योग हो तो शुभ और अशुभ ग्रहोंका योग हो तो अशुभ होता है ।।२५।। मृगशीर्ष नक्षत्र पर शुभ और अशुभ ग्रह हो तो कभी अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चूहा, कीडा, स्वचक्र, और कभी परचक्र इत्यादिके उपद्रव हो ॥२६॥ - सूर्यका आर्द्रा में प्रवेश सूर्योदयमें हो तो रोग करनेवाला होता है। सूर्योदय से दो घड़ी दिन चढ़ने बाद हो तो विवाह और रोगकारक होता है । मध्याह्न दिन में हो तो खेतीका नाश, धान्य महँगे और तृणका नाश हो ॥२७॥ सन्ध्या समय आर्दा हो तो सुभिक्ष करें, रात्रिमें हो तो लोक में सब प्रकारके सुखकारक होता है। मध्यरातमें हो तो भोग प्रदान करें और पीछली शेष रात्रिमें हो तो पहला सुख और पीछे दुःख करें॥२८॥ मृगशिर नक्षत्र में वायु अधिक न चले तथा आम मेघष्टि न हो तो वर्षा न बरसे ॥२६॥
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