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প্রাম मिगसिर जइ सुंकह गुरु, उदयत्यमण करति । तो तुं जो ए भडुली, पुथवी चक्र.सर्मति ।।२५०॥ शुक्लपक्षे यदा शुक्ररसमुदेल्यस्तमेति वा । राजपुत्रसहस्राणां मही पियति शोणितम् ॥२५॥ अत्र हीरसूरयःपौषाधिकारे इमं श्लोकमाहुस्तेन पौषस्येवेद फैलम शुक्रास्तराशिफलम्
शुक्रस्यास्तंगमान् मेघे सर्वधान्यमहर्घता। वृषे चतुष्पदे पीड़ा धान्यनिष्पत्तिरल्पिका ॥२५२॥ मैथुने वैश्यपीडा स्यादल्पवर्षा प्रजाभयम् । कर्कटे बहुलावृष्टिलघुयालव्यथा तथा ॥२५३॥ सिंहे पीडा भूपवर्गे तथानावृष्टिजं भयम् । कन्यायवैद्यलोकस्य सूत्रधारस्य पीडनम् ॥२५४।। तुलायां सिंहबत् सर्व दुर्भिक्षं वृश्चिके मतम् । स्त्रीधान्यनाशो धनुषि मकरे धान्यसम्पदः ॥२५॥ है ॥२४॥ मार्गशिरमें यदि गुरु तथा शुक्र का उदय और अस्त हो तो पृथ्वी में कटक उपद्रव हो ॥२५०॥ यदि शुक्रका शुक्लपक्षमें उदय या अस्त हो तो महा युद्ध हो, हजारों वीर पुरुषोका रुधिर पृथ्वी पीवें ॥२५१॥
- शुक्रका अस्त मेषरोशिमें हो तो सब प्रकारके धान्य महँगे हो । वृष में हो तो पशुओं को पीडा तथा धान्य की प्राप्ति थोडी हो ॥ २५२ ॥ मिथुन में हो तो वैश्यको पीडा, वर्षा थोड़ी तथा प्रजामें भय हो । कर्क में हो तो वर्घा: बहुत हो तथा बालकोंको दुःख हो ॥ २५३ ॥ सिंहराशि में हो तो राजवर्गमें पीडा तथा अनावृष्टि का भय हो । कन्या में हो तो वैद्य लोग और सूत्रवार को पीडा हो ॥ २५४॥ तुलामें हो तो सब फल सिंहराशिकी ताह जानना । वृश्चिक में हो तो दुर्भिक्ष हो । धनुराशिमें हो तो स्त्री और धान्यका नाश हो । मकर में हो तो धान्य प्राप्ति हो ॥ २५५ ॥
"Aho Shrutgyanam"