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मेघमहोदये
शनिक्षेत्रे चन्द्रभान्वो वस्त्राणां च महघेता । शुक्रे भौमे गुरुक्षेत्रे प्रजापीडा प्रजायते ॥ २६६ ॥ चन्द्रोदये कुजक्षेत्रे तुषधान्यस्य वृद्धये । चन्द्रोदये भृगुक्षेत्रे शुक्लबस्तृयो भवेत् ॥ २७०|| रविक्षेत्रेऽतुलावृद्धिः शनिसोमभृगुदये । चन्द्रक्षेत्रे शुक्रचन्द्रबुधानामुदयो यदि ॥ २७९ ॥ षण्मास्यां स्याच दुर्भिक्षमतिवृष्टिः प्रजायते । उदितौ च बुध क्षेत्रे यदि राहुशनैश्वरौ ॥ पशुक्षयः प्रजापीडा धान्यानां च महर्घता || २७२|| शुक्रक्षेत्रे सोमसूर्यो सूर्यपुत्रोदयो यदा । राजयुद्धं च धान्यानां जायतेऽतिमहता ॥ २७३ ॥ यदोदयः शनिक्षेत्रे भौमभास्करयोर्भवेत् । घृतादीनां तदा वृद्धिर्गुडानां रक्तवाससाम् || २७४|| यदा समुदयं याति शनिक्षेत्रे शनैश्वरः ।
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मंगलके क्षेत्रमें शुक्र हो तो धान्य महँगे हो ॥ २६८ ॥ शनिके क्षेत्रमें चंद्रमा और सूर्य हो तो वस्त्र महँगे हों । गुरु क्षेत्रमें शुक्र और मंगल हो तो प्रजा को पीडा हो ॥ २६६ ॥ मंगलके क्षेत्रमें चंद्रमा का उदय हो तो तुष धान्य की वृद्धि हो । शुक्र के क्षेत्रमें चन्द्रमा का उदय हो तो शुक्ल वस्तुका उदा हो ॥२७०॥ रवि क्षेत्रमें शनि सोम और शुक्र का उदय हो तो बहुत वृद्धि हो | चंद्र क्षेत्र में शुक्र चन्द्रमा और बुधका उदय हो तो ॥ २७१ ॥ छः महीने दुर्भिक्ष हो तथा बहुत वर्षा हो । बुधक्षेत्र में राहु और शनिका उदय हो तो पशुओंका क्षय, प्रजाकों पीडा और धान्य गहँगे हों ॥२७॥ शुक्र के क्षेत्र में चंद्रमा सूर्य तथा शनि का उदय होतो राजाओंका युद्ध हो तथा धान् बहुत महँगे हीं ॥ २७३॥ शनि क्षेत्र में मंगल और सूर्यका उदय हो तो बी ग्रह तथा लाल वस्त्र की वृद्धि हो ॥ २७४ ॥ यदि शनिक्षेत्र में शनि का उ
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