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मेघमहोदये
मार्गस्य योगः पूर्णायां पञ्चानां रणकारणम् ||२८२|| मार्गशीर्षे ग्रहाः पञ्च यदि स्युरेकराशिमाः ।
सदा जनेऽतिमारी स्थान्नृपस्य मरणं कचित् ॥ २८३ ॥ अन्यत्रापि - असुह सुहा पंचग्गहा, इक्कह राशि मिलति । तहवि नराहिव कोइ मरइ, ग्रह जलहर वरसति ॥ २८४ ॥ भानुवक्रतमः क्रोडास्तृतीयस्था गुरोर्यदि ।
सुभिक्षं जायते तस्यामीदृशे योगसम्भवे ॥ २८५॥ तमोवकसवित्राचाश्चत्वारः क्रूरखेचराः ।
तृतीयस्था शनेरेते सौख्यः सद्भक्ष्यकारकाः ॥ २८६ ॥ भानुवक्रतमः क्रोडाः पञ्चमस्था गुरोर्यदि । दुर्भिक्षं जायते घोरं घोरयोगे समागते ॥ २८७॥ तमोवक्रः सवित्राद्याश्चत्वारः क्रूरखेचराः । पश्चमस्थाः शनेरेते दौस्थ्यदुर्भिक्षकारकाः || १८८८ || मन्दराहोरपि क्रूरास्तृतीयाः सौख्यकारकाः ।
हैं । मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन पांच ग्रहोंका योग हो तो युद्ध कारक होता है ॥२८२ ॥ मार्गशीर्ष में यदि पांच ग्रह एकाराशि पर हो तो लोक में महा मारी और क्वचित् राजाका मरणा हो ॥ २८३ ॥ यदि शुभ या अशुभ पांच ग्रह एकराशि पर हो तो कोई राजाका भरण हो और वर्षा बहुत बरसे ॥ २८४ ॥ यदि बृहस्पति से तीसरे स्थान में रवि, मंगल, राहु और शनि, एसा योग हो तो सुभिक्ष होता है || २८५ ॥ राहु, मंगल, सूर्य व्यादि चारक्रूर ग्रहों हैं, ये शनिसे तीसरे स्थान में हो तो सुख और सुभिक्षकारक होते हैं ॥ २८६ ॥ यदि बृहस्पति से पांचवें स्थान में सूर्य मंगल राहु और शनि का घोर योग हो तो दुर्भिक्ष होता है || २८७ || राहु केतु मंगल और सूर्य आदि चार क्रूर ग्रह शनिसे पांचवें स्थानमें हो तो दुःख और दुर्भिक्ष कारक होते हैं ||२८|| शनि और राहुसे भी तीसरे स्थानमें क्रूर ग्रह हो
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