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ग्रहयोगफलम्
तदा स्यात्तृणकाष्ठानां लोहानां च महता ॥ २७५ ॥ यदा ग्रहेण सौम्येन क्रूरेणापि च संमुखः । विद्धः करः शुभां वापि दुर्भिक्षं तत्र निश्चितम् ॥ २७६ ॥ ग्रहयुद्धे भूपयुद्धं ग्रहवके देशविभ्रमो भवति । ग्रहवेधे सति पीडा निर्दिष्टा सर्वलोकानाम् ॥ २७७॥ ज्येष्ठमासे रवियुता ग्रहाः पञ्चैकराशिगाः । श्रावणे मेघरोधाय छत्रभङ्गाय कुत्रचित् ॥ २७८ ॥ सप्तम्यां च शनिभौमौ भवेतां वक्रपामिनौ । हाहाकारस्तदा लोके विशेषादक्षिणापथे ॥ २७९ ॥ शनिः कुजो देवगुरुर्यादि शुक्रगृहे त्रयम् । एकत्र गुरुशुक्रौ वा तदा वृष्टी रणोऽथवा ॥ २८०॥ कार्त्तिकस्य नवम्यां चेद् ग्रहाः पञ्चैकराशिगाः ।
कालेऽपि महावृष्ट्या नद्यः पूर्णाः पयोभरैः ||२८१ ॥ शनिः पञ्चग्रहैर्युक्तो मार्गशीर्षेऽतिरोगकृत् ।
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२७५ ॥
दय हो तो तृण काट और लोहा ये महँगे हो
यदि शुभ और वह परस्पर संमुख हो याने दोनोंका परस्पर वेधहो तो निसे दुर्भिक्ष होता है ॥ २७६ ॥ ग्रहों का युद्ध हो तो राजाओं में युद्ध, ग्रहोंकी वक्रतामें देशमें विभ्रम, और ग्रहोंका वेव हो तो सब लोगोंको पीडा हो ॥ २७७ ॥ ज्येष्ठ महीने में सूर्य के साथ पांच ग्रह एक राशि पर हो तो श्रावण में वर्षाका रोध हो तथा कहीं छत्रभंग हो ॥ २७८ ॥ शनि और मंगल सप्तमी के दिन वक्री हो तो लोक में हाहाकार हो तथा विशेष करके दक्षिण देशमें हो |t २७६ ॥ यदि शुक्र गृह (बर) में शनि, मंगल और गुरु ये तीन ग्रह हो अथवा गुरु और शुक इकट्ठे हो तो वर्षा अथवा युद्ध हो ॥ २८० ॥ कार्तिक महीने की नवमी के दिन पांच ग्रह एक राशि पर हो तो अकालमें बहुत वर्षासे नदी जलसे पूर्ण हो ॥ २ = १ ॥ मार्गशीर्ष में शनि के साथ पांचग्रह हो तो बहुत रोगकारक होते
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