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मथमहादय त्रैलोक्यदीपके
श्रविणे दधिदुग्धेस्तु भूमि सिञ्चति मेघतः । भाद्रपदे धनैर्धान्यमंधों हर्षात प्रमादयेत् ॥२४॥ लोके तु-बुध ऊगमणो सुकत्थमणो, जइ.हुव श्रावणमास।
इम जाणे चो भडली, मणुप्रा न पीइ छास ॥२४॥ हीरसूरयः--'आसोइ वुध ऊगमण, पुहवी हुइ सुगाल ।
आसोइ शुक्र आधमें, तो रौरवो दुकाल ॥२४॥ मागसिरे सुकत्थमण, अहवा उगे मज्का जो जाणे तुजुग प्रलय, गुरु आवे ए गुज्म' ॥२४॥ अर्घकाण्डेऽपि स्वात्यादिनवके ग्राह्य भरण्याष्टके धृतिः। विक्रयः शेषऋक्षेषु शुक्रास्ते फलमुत्तमम् ॥२४८॥ पाठान्तरे-'श्रीधणे कृष्ण पक्षे च प्रतिपदिवसे धृतिः । विक्रयः शेषऋक्षेषु शुक्रास्ते फलमुत्तमम् ॥२४॥ और कुछ प्रशुओंमें पीडा हो ॥२४३॥ श्रावणमें हो तो दही दूध अधिक हो तशा वर्षी से भूमि तृप्त हो । भौद्रपद में हो तो धन धान्य की प्राप्ति पूर्वकें बरसाद हर्षसे आनंदित करता है ॥२.४४॥ यदि श्रावगमासमें बुध का उदय हो और शुक्र का अस्त हों तो मनुष्य छोस न पीवें अर्थात समय अच्छा हो ॥२४५।। आश्विन महीनमें बुध का उदय हो तो पृथ्वी मैं सुकॉल हो, किंतु आश्विन शुकको अस्त हो तो बड़ाभयंकर दुष्काल हो ॥ २१६ ! मार्गशिर में शुक्र का अस्त या उदय हों तो युगप्रलय जानना ॥ २४७ ॥ शुक्र का अस्त स्वाति आदि नव नक्षत्रों में हो तो धान्य आदि ग्वरीद करना , भरणी. आदि मा नक्षत्रों में हो ती संग्रह करना और बाकी के नक्षत्रोंमें हो तो बेचना, इत्यादि शुकास्त का उत्तम फल कहा ।२.८ ॥ पाठान्तरंसे- शुक्रास्त में श्रावण कृष्ण पचवाके दिन संग्रह करना और बाकी के नक्षत्रों में बेचना अच्छा फल कहा
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