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(vi)
मैयमोदये
स्वल्पा भरण्या संस्पें तुपधान्यमहघेता व तिलनाशः ॥ २३२॥ सर्वभाषाल्पत्वमाग्नेये सर्वधान्यनिष्यत्तिः ।
रोहियमारोग्यं मृगे महर्घाणि धान्यानि ॥२३३॥ रौद्रेऽल्पवृष्टिरनमधोमुखं तदपि नश्यति विशेषात् । पुष्ये दुर्भिक्षभयं चौराः सार्वे न वर्षा स्यात् ॥ २३४ ॥ मधादित्रितये कष्टं हस्ते मेघमहोदयः ।
रोगा अवृष्टिवित्रायां स्वातौ क्षेमं सुभिक्षता ॥ २३५॥ तदेव विशाखायां तुषधान्यमहर्घता ।
अल्पवृष्टि मैत्रर्क्ष चतुष्पदप्रपीडनम् ॥ २३६ ॥ द्वारानुसाराच्छेषेषु फलमाधैर्निगद्यते । चारानुसाराद् दुर्भिक्षं सुभिक्षं स्वल्पमादिशेत् ॥ २३७॥ शुक्रोदय तिथिफलम् --
पृथ्वीसुखं स्वात्प्रतिपचतुष्के, चौरोदयः पश्चमिकाचतुष्के ।
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उड़द ये धोडे हों । भरणी में हो तो तुष धान्य महँगे हों और तिल का विनाश हो ॥ २३२ ॥ कृत्तिका में हो तो सरसव, उड़द थोडे हो और सर्व प्रकारके धान्य की प्राप्ति हो । रोहिणी में हो तो आरोग्य रहें । मृगशिरमें हो तो धान्य महँगे हो || २३३ ॥ भर्द्रा में हो तो वर्षा धोड़ी, www अधोमुख हो यह भी विशेष करके नाश हो । पुण्य में दुर्भिक्ष मौर चोरोंका भय हो । आश्लेषामें वर्षा न हो ॥ २३४ ॥ मघा, पुर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी ये तीन नक्षत्रोंमें हो तो दुःख हो । हस्तमें, वर्षा का उदय हो । चित्रामें हो तो रोग हो तथा वर्षा न हो । स्वातिमें क्षेम और सुभिक्ष हो || २३५|| विशाखा में हो तो तुष धान्य महँगे हो । अनुराधा में हो तो वर्षा थोड़ी तथा पशुओंको दुःख हो ॥ २३६ ॥ बाकी के नक्षत्रोंका फल पहले जो द्वारोंके अनुसार कहा है इसके अनुसार सुभिक्ष या दुर्भिक्ष इनका विचार कहना ॥ २३७॥
"Aho Shrutgyanam"