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शुक्रवारफलम्
(४५.७)
शुक्रोदयराशिफलम्
मेषे शुक्रोदये धान्ये मह रोगसम्भवः ।
तृषे धान्यं समर्थ स्यान्नृपास्तुष्टाः प्रजासुखम् ॥ मिथुने लोकसरणं गोधूमा बहवो भुवि ।
कर्केऽतिवृष्टिस्य विनाशं चौरजं भयम् ॥ २२८॥ . सिंहेऽपि कर्कवाच्यं कन्यायां नृपपीडनम् । स्वल्पाः वृष्टिस्तुलायोगे समर्धे धान्यमाहितम् ॥२६॥ वृश्चिके पहला वृष्टिर्दुर्भिक्षं धान्यमल्पकम | धनुष्यवर्षणं धान्यं मह मकरे तथा ॥ २३०॥ कुम्भेऽतिविरलो मेघश्चतुष्पदविनाशनम् । मीने सुभिक्षं लोकानां सुखं मेघमहोदयः ॥२३१॥ शुक्रनक्षत्र भोगफलम् -- शुक्रेऽश्विन्यां ब्राह्मणजातिविरोधो यवास्तिला माषाः । संसारमें अनाज बहुत हो और आनंद हो || २२६॥
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शुक्र का उदय मेपराशिमें हो तो धान्य महँगे और रोगको प्राप्ति हो । वृषराशिमें हो तो धान्य सस्ते, राजा संतुष्ट और प्रजा सुखी हो ॥२२७॥ मिथुन में हो तो लोकमें मरण हो तथा गेहूँ की प्राप्ति पृथ्वी पर बहुत हो । कर्कमें हो तो अतिवृष्टि, धान्यका विनाश और चोरोंका भय हो ॥२२८॥ सिंहराशि कर्कराशिकी जैसा फल समझना ! कन्यामें राजाओंको पीडा हो। तुलासशि में हो तो वर्षा थोड़ी और धान्य सस्ते हो ॥ २२६॥ वृश्चिक में हो. तो वर्षा बहुत, दुर्भिदा और धान्यकी अल्पता हो । धनु तथा मकरराशि में हो तो वर्षा न हो और धान्य महँगे हो ॥ २३० ॥ कुंभमें हो तो बहुत-थोड़ी वर्षा हो और पशुओं का विनाश हो । मीनराशिमें शुक्र का उदय हो सो सुभिक्ष, लोकोंको मुख और मेघका उदय हो ॥२३१३१
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शुकोदय अश्विनी नक्षत्र में हो तो ब्राह्मण जातिमें विरोध, यब तिल्ल
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" Aho Shrutgyanam"