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शुक्रवारफलम्
(४५५)
कन्या मंगळ ए. अहिनाणी, वर से धूलि न वरसह पाणी ॥ २१५ ॥ मेघमालायां तु
'सिंहशुक्र आणि ते आई, तो जलहरमूलहथयो जाई । बरसै मेह तो प्रतिवरसेह, मासु काती रोग करेइ' ॥२२६॥ अथ शुक्रद्वाराणि -
भरण्याष्टके भानां मेघद्वारं कवेः स्मृतम् ।
मेघवृष्टिः प्रजानन्दः समर्थ धान्यमेव च ॥ २१७ || मघादिपञ्चके शुको धूलिद्वारेऽभ्युदीयते । प्रजादुःखाज्जलनाशात् तदोपद्रवमादिशेत् ॥२१८॥ स्वात्पादिसप्तके राजद्वारं शुक्रोदयो भवेत् । लोके भयं छत्रपतिक्षयं तत्र निवेदयेत् ॥ २१६ ॥ श्रुत्यादिसप्तके शुक्रोदये लोकसुखं बहु | कनकवारसादिष्टं सुभिक्षं तत्र निश्चितम् ॥ २२० ॥ मतान्तरे - स्वात्यादित्रितये धर्मद्वारं शुकोदये शुभम् ।
की वर्षा हो किंतु जलवर्षा न हो' ॥ २१५ ॥ सिंहराशि पर शुक्र श्रावणा मासमें आये तो बरसातका मूलसे नाश हो, यदि बरसात बरसे तो बहुत अधिक बरसे और आसोज या कार्तिक महीने में रोग करें ॥ २१६ ॥
भरणी आदि माठ नक्षत्र पर शुक्र का उदय हो तो मेघद्वार होता इस में मेववृष्टि, प्रजा को प्रानंद और धान्य सस्ते हों ॥। २१७ ॥ मत्रादि पांच नक्षत्र पर शुक्र का उदय हो तो धूलिद्वार होता है, इस में प्रजा को दुःख, जल का नाश और उपद्रव होते हैं ।। २१८ ॥ स्वाति भादि सात नक्षत्र पर शुक्रका उदय हो तो राजद्वार होता है, इसमें लोकमें भय और छपते का नाश होता है ॥ २१६ ॥ श्रवण आदि सात नक्षत्रों पर शुकका उदय हो तो कनकद्वार होता है, इसमें लोक बहुत सुखी हो तथा विसे, सुभिक्ष हो ॥ २२० ॥ पाठान्तर से
स्वाति माति तीन
"Aho Shrutgyanam"