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शुक्रचारपलिम्
(axs) ऋयाणकानां च महर्घतायै तुलाप्पलिधीतुमहर्घतायै ।।२०५॥ राज्ञां भयं धन्विनि रोगचारो, मृगेऽल्पलाभो व्यवसायिलोके। कुम्भेऽतिवायुर्हिमदग्धवृक्षा,मीनेऽनधीना नृपधर्मपीडा॥२०
अथ शुक्रचारः । गुरुमन्दतमाकेतुफलं प्रांगेव निश्चितम् । क्रमाक्रान्तस्य शुक्रस्य फलं. चारगतं ध्रुवे ॥२०॥ शुकचतुष्कचनम्
चतुष्कं चतुष्कं ततः पञ्चकं च, ... त्रिकं पञ्चक पटकमायाति भानाम् । यदा भागवो मागवोढाथ वक्रो, . . निविदा प्रसिद्धैः परैः करखेटः ॥२०८॥ .प्रथमचतुमके गोधनपीडा, मेघमहोदधदोऽग्रचतुष्के । गाशि में भी फल जानना, तथा जल थोडा । कन्यारराशिने बुध अस्स हो तो चोरों का भय, अतिवर्षा और कमाणक म.गे हो । तुला और वृश्चिक में भी धातु महँगी हो ॥२०५॥ धनूरपशि में बुधका अस्त हो तो राजाओं का भय हो । मकर में व्यापारी लोगों में लाभ थोड़ा हो । कुंभ में वायु अधिक चलें तथा हिम से वृक्ष नष्ट हो। मीनराशिमें बुधका अस्त हो तो पराधीन ऐसी राजवर्गको पीडा हो ॥ २०६ ।। इति बुधवार- ... गुरु, शनि, राहु और केतु इन का फल पहले कहा गया है, अब क्रमसे शुक्रवार को फल कहता हूँ ॥२०७॥ शुक्र क्रमसे चार, चार,पांच तीन, पांच और छ इन नक्षत्रों पर आता है। यदि इन नक्षत्रों पर शुक मार्गी हो या वक्री हो या अन्य प्रसिद्ध दूर ग्रहों से वेवा जाता हो इस का फल कहता हूँ॥ २०८ ॥ प्रथम चतुक ( चार नक्षत्रों) में शुक्र हो तो मौओं को पीडा, दूसरा चार नक्षत्रों में हो तो मेघ का उदय हो, दोनों
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