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॥ १६३॥
मह तुजं कहिउं भंडली, मेह न बरसे लोय ॥ १६२॥ अह बुध उग्गह भद्दवे, तौ बहु महवा करेइ । अहवा आसू उगम, तौ काकर कमल करेइ" शुक्रस्यास्तंगते सौम्यः प्रोदेति श्रावणे यदा । तदा भाद्रपदे वापि मेघो नैव प्रवर्षति ॥ पाठान्तरमर्द्ध- 'चतुष्पद विनाशेन तक्रं न कत्रापि लभ्यते ' ॥१६४॥ श्री होरसूरिकृतमेघमालायाम्
"सिंह तणा दस दिवस वलि, बोल्या उगै बुध ।
इंद महोच्छव मांडल्यइ, महीयल वरसे युध ॥ १९५॥ मैत्रेमासि मंडली सुणे, धारसि बुद्धि निहाण ।
जह शुभग्रह उगमण हुइ, घृत मत बेचि सुजाण ॥ १६६ ॥ यासी बुधगमें, तो कप्पास विणास ।
यहवा तेहु प्राथमे, राती वस्तु विणास ॥१६७॥
कांद तुं पूछइ भडुली, काती तणो विचार | बुध ऊगे अंधारी, अन्न हुइ निवार ॥ १६८ ॥
वर्षा न बरसे ॥ १६२॥ यदि भाद्रपदमें बुध उदय हो तो वर्षा अधिक हो, यदि पासोज में उदय हो तो कमलकर (सूर्य) वर्षा न करे ॥ १६३ ॥ शुकका अस्त होने पर श्रावर में बुधका उदय हो तो भाद्रपद में वर्षा न बरसे या पशुओंका विनाश हो जानेसे छास कहीं भी न मिले ॥१६४॥ सिंह
कांति से दशवें दिन बुत्र का उदय हो तो इन्द्रमहोत्सव याने पृथ्वी पर वर्षा अच्छी हो ॥ १६५॥ चैत्र मासमें द्वादशी को बुध को देखें यदि इस की पूर्व तरफ शुभग्रह हो तो घी नहीं बेचना चाहिये ॥१६६॥ आसोज में बुध का उदय हो तो कपासका विनाश हो, अथवा अस्त हो तो लाल वस्तुका विनाश हो ॥ १६७॥ कार्त्तिक कृष्णपक्ष में बुधका उदय हों तो निवार पन्न हो ॥ १६८ ॥ कार्तिक शुक्लपक्षमें बुधका उदय हो तो तिल
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