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यशकयुग्मै धान्यविनाशी, षटूत्रिकचारी सुखदः शुकः ॥ २८२॥ पत्रिकमध्ये धान्यं ग्राह्यं पञ्चकमध्ये धान्यं देयम् । एवं लक्ष्मी धान्यवतां स्याद् भार्गवचारस्यैष विचारः ॥ २१० ॥ भरणीतः समारभ्य लभ्यमेतत्फलं जने । शुक्रचारे युद्धमन्ये नृपाणां प्राहुरादिमा ॥ २१९ ॥ पदाह लोक:- "बुधग्रह केरे अत्थमण, शुक्रह केरें चारू । खांडो जागे क्षत्रियां, के हुइ मेह अकाल” ॥२१२॥ नंदायामसुरानन्दी समुदीतो महामुदे ।
घनाघना घना धान्यं समर्धे सुखिता जनाः ॥२९३॥ सिंहशुक्रस्तुला भौमः कर्कजीवो यदा भवेत् । धूलिवर्षा महान् षायुर्भवेद्धान्यमहार्घता ॥ २१४॥ पाठान्तरे
'कर्क शुक्र सर भरिया सूकै, सिंह शुक्र जल फिमे न सुकै । पदक नक्षत्रों शुक्र हो तो धान्य का विनाश, छ: और त्रिक नक्षत्रों में शुक हो तो सुखदायक होता है ॥ २०६ ॥ छः और त्रिक नक्षत्रों में शुक्र हो सो धान्यका संग्रह करना और पंचकनक्षत्रोंनें धान्य बेचना उचित है । इसी तरह धनवानोको लक्ष्मी होती है, यह शुक्रवारका विचार है ॥२१॥ भरणीनक्षत्रसे आरंभ कर मनुष्यों में इस का फल प्राप्त है । प्राचीन लोग शुक्र का चार में राजाओंका युद्ध मानते है ॥ २११ ॥ बुधग्रहका मस्तमें शुक का उदय हो तो युद्ध हो या अकाल वर्षा हो ॥ २१२ ॥ नंदातिथिमें शुक्र का उदय हो तो बड़ा हर्ष, बहुत वर्षा, बहुत धान्य, सुभिक्ष और मनुष्य सुखी हो ॥ २९३ ॥ सिंहगशिके शुक्र, तुलाके मंगल और कर्क राशि के बृहस्पति यदि हो तो धूलि की वर्षा, महावायु और धान्य महँगे हों ॥ २१४॥ पाटान्तरसे - 'कर्कराशि के शुक्र हो तो भरा हुआ सरोवर सूक जाय सिंहराशिके शुक्र हो तो जलवर्षा न हो, कन्याराशिमें मंगल हो तो धूलि
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