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मेघमदादये
चौरा निभीतिर्नृपष्टनीतिनिष्पत्तिरन्नस्य तु षृश्चिकस्थे ॥ १६३॥ धनुषि रसातलष्षृष्टिः शालिगुडादेर्महर्घता मकरे । पश्चिमघान्य विनाशो वर्षाप्यतिशायिनीदेशे ॥१६४॥ कुम्भे तोडागमात् पीडा यदि वा मूषिकादिना । मीने कुजोदयान्नैव वर्षा दुर्भिक्षसाधनम् ॥ १६५॥ इति ॥ मंगलास्तंगमफलम् ----
मङ्गला स्तंगमान्मेषे पाषाणानां महर्चता । तृणादेः खलु वस्तूनां सुभिक्षं सुस्थता वृषे ॥ १६६ ॥ युग्मेऽतिवृष्टिः कर्कस्थे तस्मिन् मूचान्यशून्यता । सिंहेऽश्वखरयोः पीडा चतुष्पदमहर्घता ॥ १६७॥ कन्याइये महर्घाः स्युर्गोधूमाश्रणका यवाः । अलौ सुभिक्षं नृपभी-धनुर्महर्घशालिकृत् ॥१६८॥
इसलिये कन्या और तुला में सुभिक्ष कहा है । वृश्चिक में हो तो चौर तथा अनिका भय हो, राजनीति में अन्याय और अन्नकी प्राप्ति हो ॥ १६३ ॥ धनुराशिमें हो तो वृष्टि रसातल में हो, चावल गुड आदि महँगे हो । मकर में हो तो पश्चिम देशके धान्यका विनाश तथा देशमें वर्षा बहुत हो ॥ १६४ ॥ कुंभराशि में टीड्डीका भागमनसे दुःख या चूहे आदि का उपद्रव से दुःख हो । मीनराशि में मंगल का उदय हो तो वर्षा न हो और दुर्भिक्ष हो ॥ १६५॥
मंगलका अस्त मेषराशिमें हो तो पत्थर महँगे हो । वृषराशिनें हो तो तृण आदि वस्तुओं की सुविक्षता और नीरोग्यता हो ॥ १६६ ॥ नियुनराशि हो तो वर्षा अधिक हो । कर्कराशिमें हो तो भूमिके धान्य शून्य हो । सिंहराशिमें हो तो घोडे तथा खच्चरों को पीडा और पशु महँगे हो ॥ १६७॥ कन्या और तुलाराशिमें हो तो गेहूँ चरणा और यंत्र ये महँगे हो । दृषि कराशिनें हो तो सुभिक्ष तथा राजाओं का भय हो । धनराशि हो तो
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