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मावारपलम्
लोकेऽपि-"रविराहशनिश्चरभूमिसुना,
उदयन्ति च मध्यमराशिगताः । धनवान्यहिरण्यधिनाशकरा, बिलयन्ति महीपतिछत्रधराः" ॥१४८॥ शानिर्मीने गुरुः कर्के तुलायामपि मङ्गलः । याचरति लोकस्य तावत्कष्टपरम्परा ॥१४९।। भौमस्याधो गुरुस्तिष्ठेद् गुर्वधोऽपि शनैश्चरे । प्रहाणां मुशलं ज्ञेयमिदं जगदरिष्टकृत् ॥१५॥ रविराशेः पुरो भौमो वृष्टिसृष्टिनिरोधकः । भौमाद्या याम्यगाश्चन्द्राञ्चत्वारो वृष्टिनाशकाः ॥१५॥ महबक्रिफलम् - भौमयके अनावृष्टिर्बुधवक्रे धनक्षयः । गुरुबक्रे स्थिरो रोगो शुक्रवके सुखी प्रजा ॥१५॥
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तब दो मास धान्य तेज रहें ।।.१४७ ॥ रवि राहु शनि और मंगल ये मयम राशिमें उदय हो तो धन धान्य सुवर्ण का विनाश करें तथा छत्रधारी राजाका नाश हो ॥१४८॥ मीनराशि पर शनि, कर्क पर गुरु और तुला पर मंगल जब तक रहे तब तक कष्ट रहें ॥१४६॥ मंगल के नीचे वृहस्पति, और बृहस्पति के नीचे शनि हो तो यह ग्रहों का मुशल योग आनना यह जगत्को अरिष्ट करनेवाले हैं ॥ १५० ॥ सूर्य राशिसे आगे मंगल हो तो वर्षाकी उत्पत्ति को रोके और चंद्रमा से मंगल आदि चार ग्रह दक्षिण और हो तो वष्टि का नाशकारक होते हैं ॥ १५१ ॥ मंगल के की होने में जनावृष्टि, बुवके वक्री होने में धन का क्षय, गुरुके वक्री रोगकी स्थिति, शुक्रके वक्री में प्रजा सुखी ॥ १५२ ॥ शनि के यकी में
#टी-मीनशनैश्वर कर्कगुरु, जो तुलमंगल होइ । मेहंगोरस सालि बीय, विरलो चाखे कोइ ॥१॥
"Aho Shrutgyanam"