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मङ्गलवारफलम् पृथ्वी संक्षिप्तदेहा हयभटमरणं विग्रहः पार्थिवानाम् । दुर्भिक्षं धान्यनाशो भयरुधिररुजः पित्तरोगः प्रजानां,
पीयन्ते गौगजाश्वावृषमहिषनरामार्गगौतौन यावत्।१३६। ग्रन्थान्तरेसिंहे मीनेऽय कन्यामिथुनधनुषि वा वक्रितो मन्दभौमौ,
पृथ्वीमुबासरूपां रिपुदलदलितां विग्रहान्तां च घोराम। दुर्मिक्षं सस्यनाशं भयमपि कुरुतः पापरोगं प्रजानां, पीच्यन्ते गोमहिष्योभुविनरपतयः पापचिन्ता भवन्ति।१३७ कन्यामीनधनुःसिंहेष्वार्किभौलौ च वक्रितो । दुर्वन्ति विभ्रमं लोके नृपाणां क्षयकारको ॥१३८॥ . कृत्तिकारोहिणीसौम्यमघाचित्राविशाखिकाः । .. ज्येष्ठानुराधामूलानि पूर्वाषाढा तथा पुनः ॥१३९॥ एतेषां चैव ऋक्षाणां भौमः शुक्रस्तथा शनिः। उत्तरस्यां यदा यान्ति मास्याषाढे विशेषतः ॥१४०॥ .. रुधिरव्याधि, प्रजाओं को पितका रोग, गौ, हाथी, घोडा, बैल, भैंस और मनुष्य ये सब जब तक शनि और मंगल मार्गगामी न हो तब तक दुःखी को ॥१३६॥ प्रथान्तर में-- सिंह मीन कन्या मिथुन और धनु इन राशि पर शनि तथा मंगल वक्री हो तो पृथ्वी द्वेष रूपवाली, शत्रु दलसे दलित मौर घोर विग्रहवाली हो, दुर्भिक्ष, धान्यका विनाश और भय, प्रजा पाप रोगसे दुःखी, गौ भैन अ.दि पशुओंको दुःख और राजाओं पाप चिन्ता बोले हो ॥ १३७ ॥ कन्या मीन धनु और सिंह इन राशिमें शनि तथा मगल वक्री हों तो लोकमें विभ्रम और राजाओंका क्षयकारक होते हैं ॥१३॥
सका, रोहिणी, मृगशिर, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्टा, अनुराधा, मूल और भीष हा इन नक्षत्रों के उत्तर भागमें मंगल, शुक्र और शनि ये भाषा समें विशेष कर भावे तो सुभिक्ष, यल्याण और आरोग्य हो, मध्य में
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