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मङ्गलचारफलम्
(४३९)
स्वातायनावृष्टिरथ द्विदेवे, कर्पा सगोधूमहभावः ॥ १२७॥ मैत्रे सुभिक्षं पशुपक्षिपीडा, ज्येष्ठाकुजे स्वल्पजलं च रोगाः । मूले द्विजक्षत्रियवर्गपीडा,
महता वा तुपधान्धराशेः ॥ १२८ ॥ पूषा कुजे भूरि जलाः पयोदा,
गावोऽल्पदुग्धा वसुधान्नपूर्णा । महता शालितिलाज्यमाषे
वग्रेऽपि तत्पूर्ववदेव भाव्यम् ॥ १२६ ॥
श्रुतौ च रोगा बहुधान्ययोगो, भूम्यां न पश्चाज्जलदागमश्च । स्पाइसवे वासववत्समृद्धि-धन्यैः समर्धे गुडशर्करादि | १३०| स्युर्वारुणे कीटकमूषकाद्यास्तथापि धान्यानि बहूनि भूम्याम् ।
हो तो तीव्ररोग की बहुत पीडा, चावल और गेहूँ महँगे हो । स्वाति में मंगल हो तो अनावृष्टि हो । विशाखा में मंगल हो तो कपास और गेहूँ महँगे हो ॥ १२७॥ अनुराधा में मंगल हो तो सुभिक्ष और पशु पक्षियों को पीड़ा हो । ज्येष्ठा में मंगल हो तो जल थोडा तथा रोग हो । मूल में मंगल हो तो ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग को पीडा, या तुष और धान्य महँगे हों ॥ १२८ ॥ पूर्वाषाढा में मंगल हो तो बहुत जल देनेवाले मेघ हों, स्मै, दूध. थोड़ा दें तथा पृथ्वी धान्यसे पूर्ण हो । चावल, तिल, घी, उडद ये महँगे हो । उत्तराषाढामें भी पूर्वाषाढाकी तरह जानना ॥ १२६ ॥ श्रवण में मंगल हो तो रोग हो, धान्य की अधिक प्राप्ति और पीछे भूमि पर वर्षा न हो । धनिष्ठामें मंगल हो तो इंद्रकी तरह समृद्धि हो, धान्य और गुड. चीनी सस्ते हों ॥ १३० ॥ शतभिषा में मंगल हो तो कीट चूहा श्रादिका उपद्रव हो तो भी पृथ्वीमें बहुत धान्य हो । पूर्वाभाद्रपदा में मंगल
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