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मैत्रमहोदये
सुभिक्षं क्षेममारोग्यं मध्ये च मध्यम फलम् । दक्षिणेन यदा यान्ति ईतिरोगभयं भवेत् ॥१४॥ कुलके-"सुरगुरु रविसुरा धरणिसुय, जइ एकत्थ मिलंति।
भूमिकवाले मंडिया, भारी भीख भमन्ति ॥१४२॥ जह वका धरणिसुप्रो विसाहमहमूलकत्तियारूढो। अन्नं कुणइ महरवं इकं निवई विणासेइ" ॥१४३:। चलत्यङ्गारके वृष्टिरुदये च बृहस्पतेः । शुक्रायास्तंगमे वृष्टिस्त्रिधा वृष्टिः शनैश्चरे ॥१५॥ लोकेऽपि-"सुकह केरे अत्यमण, मंगल केरे चाल । राउ तीया भूमी मरे, कह वरसे मेह अकाल ॥१४॥ भौमशुक्रार्किजीवाना-मेकोऽपीन्दु भिनत्ति चेत् । पतत्सुभटकोटीभिः प्रीतप्रेता तदा जिभूः ॥१४६॥ मेषवृश्चिकयोमध्ये यदा तिष्ठति भूसुतः। - तदा धान्यं महर्घ स्यान्मासळ्यमुदाहृतम् ॥१४७॥ आवे तो मध्यम और दक्षिण भागमें आवे तो ईति और रोग भय हो । १३६ ॥ १४० ॥ १४१ ॥
यदि बृहस्पति शनि और मंगल ये एक साथ हो तो महा युद्ध और बड़ा दुष्काल हो !॥ १४२ ॥ यदि विशाखा, मघा, मूल और कृतिका इन नक्षत्रों पर मंगल वक्री हो तो अनाज महगे हों और कोई एक राजा का विनाश हो ॥ १४३ ॥ मंगलके बदलने पर वर्षा, बृहस्पति के उदय में वर्षा, शुरु का अस्त में वर्षा और शनैश्चर की तीनों भवस्थाओं में वर्षा होती है ॥१४४॥ शुक्रके अस्तमें मंगल का उदय हो तो राजाओं युद्ध में मरे, की वर्षा और कहीं दुकाल हो ॥१४५॥ मंगल शुक्र और चूहा स्वति इनमें से एक भी चंद्रमाको वेवता हो तो गिरे हुए मुभट समुह से पृथ्वी प्रेतमय हो ॥१४६॥ मेष और वृश्चिकके बीच में मंगल स्थित से
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