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मेघमहोदये पूभामहीजे तिलवस्त्ररूतकर्पासपूगादिमहर्घता वा॥१३१॥ दुर्भिक्षमेवोत्तरभाद्रिकायां,
वर्षा न मेघो नयनेऽपि किश्चित्। सौख्यं सुभिक्ष क्षितिजे सपौष्ण्ये
नरेषुरोगा बहुधान्यलक्ष्म्या ।।१३२।। इति ।। मङ्गलवक्रिफलम्यत्र राशौ कुजो याति वक्र तत्र सुनिश्चितम् । तबाच्यानि क्रयाणानि महर्षाणि भवन्ति हि ॥१३३॥ मकरे मङ्गले सौख्य ततः कुम्भादिपञ्चके । यदा गच्छेत्तदा दौस्थ्यं तुलायामफि मङ्गले ॥१३४॥ कर्णसरसमञ्जिष्ठा बहुमूल्यास्तदोदिताः । सऋरे मङ्गले विद्धे ऋरान्तरगतेऽपि च ॥१३॥ मीने मेषे च सिंहे धनुषि वृषमृगे वक्रितो मन्दभौमौ, हो तो तिल, वस्त्र, रूई, कपास, सोपारी आदि महँगे हो । १३१ ।। उत्तराभाद्रपदामें मंगल हो तो दुर्भिक्ष हो तथा बिन्दुमात्र भी वर्षा न बरसे।' रेवतीनक्षत्र में मंगल हो तो पृथ्वी पर सुख और सुभिक्ष हो, मनुथ्योंमें रोग और धान्य लक्ष्मीकी अधिकता हो ॥१३२॥
जिस राशिमें मंगल हो उस राशि में निश्चय करके वक्री होता है । यदि वक्री हो तो भयाणक महँगे हो ॥ १३३ ॥ मकर में मंगल वक्री हो तो सुख और कुंभादि पांच राशि तथा तुलार शि में मंगल वक्री हो तो दुःख हो ॥१३४॥ कपास रस और मँजीठ ये महँगे हो । मंगल करग्रहों के साथ हो या अलग होकर ऋग्रहोंसे वेधित हो तो भी कपास आदि महंगे हों ॥१३५॥ मीन, मेष, सिंह, धनुः, वृष और मकर इन राशियों में मंगल तथा शनि वक्री हो तो पृथ्वी संक्षिप्त देहवाली हो धोड़े और सुभटों का मरण, राजाओं का विग्रह, दुर्भिक्ष, धान्य का विनाश, भय,
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