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मेघमहोदये
संक्रान्तिर्जायते यत्र भास्करारशनैश्वरे । तस्मिन्मासे भयं घोरं दुर्भिक्षं दृष्टिचौरजम् ॥१७॥ ऊर्ध्वस्थितः सुभिक्षं करोति मध्ये फलं निविष्टस्तु । शयितो भानुरवृष्टिं दुर्भिक्षं तस्करभयं च ॥ १८ ॥ संक्रान्तीनां वाहनादीनि-
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सिंहव्याघ्रौ शुकर खरगजमहिषा हयाश्वमेषवृषाः । कुर्कुट एवं वाहनमर्कस्य यवादिकरणबलात् ॥ १६ ॥ मतान्तरे - गजो बाजी वृषो मेषो खरोष्ट्रसिंहवाहनाः । भानोर्थवादिकरणे शेषे शकटवाहनः ||२०|| सितपीतनीलपाण्डुर- रक्तासितधवल चित्रवन्त्रधरः । कम्बलवान् नग्नोऽर्कः कृष्णांशुकमृद्धवादौ स्यात् ॥ २१ ॥
हैं, परन्तु इससे विपरीत हो तो अशुभ जानना ॥ १६ ॥ रवि, मंगल और शनिवार को संक्रांति हो तो उस महीने में चोरोंसे भय और वर्षा से दुर्भिक्ष हो ॥ १७ ॥ ऊर्ध्व स्थित (खड़ी) संक्रांति सुभिक्ष करती है । बैठी संक्रांति मध्यम फलदायक है और सुप्त संक्रांति अनावृष्टि, दुर्भिक्ष और चोरों का भदायक है || १८॥
बवादि सात चरकरण और शकुनि आदि चार स्थिरकरण ये ग्यारह करणके योगसे संक्रांतिके वाहन, वस्त्र, भोजन, विलेपन, आयुध, जाति, पुष्प आदि अनुक्रमसे जानना चाहिये ।
संक्रांति वाहन सिंह, व्याघ्र, वराह, गर्दन, हाथी, भैंसा, घोडा, कुत्ता, बकरा, वृष ( गौ), कूकडा ये ग्यारह वाहन हैं ॥ १६ ॥ मतान्तर से- हाथी, घोडा, बेल, बकरा, गर्दभ, ऊंट, सिंह और बाकी के सबको शकट ( गाड़ी) का वाहन हैं ॥ २० ॥
संक्रांति वस्त्र- श्वेत, पीला, हरा, पांडुर, लाल, कृष्ण, कज्जलवर्ण, अनेकवर्ण, कम्बल, नग्न और घनवर्ण ये ग्यारह वस्त्र हैं ॥२१॥
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