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चन्द्रचारफर्तम्
वराह:- "प्राणेशमाषादतमित्रपते, क्षपाकरेोपगतं समीक्ष्य | वक्तव्यमिष्टं जगतोऽशुभं वा शास्त्रोपदेशाद् ग्रहचिन्तकेन ॥ रोहिणीशकटसोगः
यथा रथात् पुरोऽश्वाः स्युः शीतगो रोहिणी तथा । उदेति चेत्सुभिक्षाय भवेन्मेघमहोदयः ॥१७ पल्लिपतिविनाशाय भूपाला रणकारिणः । विरोधान्मार्गसंरोधश्वर्यचर्या महाभयम् ॥१८॥ - रोहिणी रोहिणीनाथो रथे साम्यपथे व्रजेत । निष्पत्तावपि धान्यस्य नाशस्तीडादिदंष्ट्रया ॥ १९ ॥ हिमांशो रोहिणीपश्चादुदेत्यशुभवर्षकृत् । शुक्लतृतीयादिवसे वैशाखे तद्विचार्यते ||२०|| आर्द्रान्त्या तमोभुक्ते स्वातिमारभ्य यावता । विलोमगत्या कालेन तावता दैवयोगतः ॥२॥ भिनत्ति रोहिणीं चन्द्रस्तदा दुर्भिक्षमादिशेत् ।
शास्त्रों में कथानुसार ग्रहों के विचार द्वारा जगत् का शुभाशुभ कहना चाहिये ॥ १६ ॥
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जैसे रथके आगे घोड़े होते हैं, वैसे चंद्रमा के आगे यदि रोहिणी उदय हो तो मेघका उदय और सुभिक्ष हो ॥ १७ ॥ पल्लीपतीका विनाश, राजा युद्ध करनेवाले, विरोधसे मार्ग में अटकाव, चोरी और बड़ा भय हो ॥ १८ ॥ रोहिणी तथा चंद्रमा रथमें साम्यपथमें हो तो उत्पन्न हुए धान्य का टीड्डी आदि से विनाश हो ॥ १६ ॥ चंद्रमासे रोहिणी पीछे उदय हो तो अशुभ वर्षकारक है, इसका वैशाखशुक्ल तृतीया के दिन विचार करें ॥ २० ॥ राहु विलोम (उलटी ) गतिसे स्वातिसे आर्द्रा का अन्त्य भर्द्ध तक जिसने समयमें भोगे उतने समय में यदेि दैवयोगसे चंद्रमा रोहिणी को वेधे तो दुर्भिक्ष, राजाओं का विग्रहसे मरणा और प्रजाको अधिक दुःख हो ॥ २१ ॥ २२ ॥
"Aho Shrutgyanam"
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