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मेघमहोदये
अष्टोत्तरीदशावः संशोधितमिदमायव्यय चक्रम् ..
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- इति वर्षराजस्योपरि सर्वराशिषु आयव्यययंत्रस्थापना। आयेऽधिके समर्घत्वं महर्घत्वं व्ययेऽधिके । योः साम्ये च समता त्रिधा धान्याता मता ॥११॥
रामविनोद ग्रन्थकारक तो वर्षराजाकी अपेक्षास उन २ रशियों की तरह मनुष्यों का प्राय व्ययकी तरह धान्यमें भी विशेष जानने के लिये यंत्र कहते है--
आय अधिक हो तो सस्ते, व्यय अधिक हो तो महँगे और दोनों
"Aho Shrutgyanam"