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विशेषश्चात्र ग्रन्थान्तरात्कृत्तिकादिभररायन्तं सप्तनाडीसमन्वितम् । भुजङ्गभीमसंस्थानं चक्रमेवं क्रमालिखेत् ॥ ६९ ॥ शुभनक्षत्रमारुतैः शुभवारगतैर्ग्रहैः । चन्द्रं संश्रयते वृष्टिर्नार्ड चक्रे व्यवस्थितम् ॥७०॥ क्रूगः क्रूरेण सम्भिन्नाः सौम्याः सौम्येन संयुताः । दुर्दिनं तत्र विज्ञेयं मित्रैर्वृष्टिमिहादिशेत् ॥ ७१ ॥ शनैश्चरार्कचन्द्राणां यद्वा योगे x ज्ञशुक्रयोः । एकनाड्यां तदा दीप्तस्तडित्पातश्च दुर्दिनम् ॥७२॥ यदा शुक्रेन्दुजीवानामेकनाड्यां समागमः । तदा भवेन्महावृष्टया सर्वत्रैकार्णवा मही ॥७३॥ एकनाडी समारूढौ चन्द्रमावरणीसुतौ । यदि तत्र भवेज्जीवो योग एकार्णवस्तदा ||७४ ||
मेघमहोदये
हैं, पूर्ण चंद्रमा बुध गुरु और शुक्र ये कर निश्चय से जलायक जानना ॥६८॥ कृत्तिकादिसे भरणी तक के नक्षत्र और सप्तनाडी वाला ऐसा बड़ा भयंकर सर्व के आकार का चक्र बनाना ॥ ६६ ॥ इसमें शुभनक्षत्र और शुभग्रहोंसे चन्द्रमा युक्त हो तो वृष्टिकारक होता है ॥ ७० ॥ क्रूर ग्रह क्रूरों के और सौम्प्ग्रह सौम्यग्रहों के साथ हो तो दुर्दिन जाना, और मित्रहो तो वृष्टिकारक होते हैं ॥ ७१ ॥ शनि और सूर्य के साथ या बुध और शुक के साथ चंद्रमा एक नाडी पर हो तो विद्युत्पात और दुर्दिन होता है ॥ ७२ ॥ यदि शुक चन्द्रमा और बृहस्पति एक नाडी पर हो तो महान् वृष्टिसे पृथ्वी एकार्णव ( जलमय ) हो जाय ॥ ७३ ॥ चन्द्रमा और मंगल एक नाडी पर हो और साथ बृहस्पति भी हो तो पृथ्वी जलमय हो जाय ॥ ७४ ॥ शुभ और क्रूर x टीलोकेऽपि तुरगुरु जो बुध मिले, तीजो शशिहर जोय । ॥ वेला मैं तुझ कयुं, जलहर सुरे जोय ॥१
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"Aho Shrutgyanam"