________________
(५२)
मेघमहोदये
याम्यनाडीस्थिताः ऋरा दूरा धृष्टिप्रदा ग्रहाः । शुभयुक्ता जलनाड्यां सर्वे वृष्टिर्विधायिना ॥५॥ ग्राममं सौम्यनाडीस्थं तत्र चन्द्रसितस्थितौ । क्रूरयोगे महावृष्टिरल्पा क्रूरस्य दर्शने ॥५८॥ उदयास्तंगते मार्गे वक्रतायां च खेचराः । सचन्द्रजलनाडीस्था मेघोदयकरा मताः ॥५६॥ यदाहुः श्रीभद्रबाहुगुरुपादाः
"रेहाहिं कित्तियाइ अट्ठावीसं पि ठवह पतीए । निप्पाइऊण ताहिं सत्तहिं नाडीहिं महभोई ॥१०॥ नाडीइ जत्थ चंदो पावो सोमो य तत्थ जइ दोवि । हुंती तहिं जाण वुट्टी इय भासह भद्दबाहुगुरू ॥६॥ एसोवि य पुणचंदो संजुत्तो केवलोव जइ होइ। केवलचन्दो नाडीइ ता नियमा दुद्दिणं कुणइ ॥२॥ वृष्टिदायक होते हैं। और शुभ ग्रहों के साथ जलनाडीमें हो तो सब वृष्टिकारक होते हैं ।। ५७ ॥ गांधका नक्षत्र सौम्यनाडीमें हो उस पर द्र। और शुक भी स्थित हो और कूरग्रह का योग हो तो महान् वर्षा हो तथा कूरग्रह की दृष्टि हो तो थोड़ी वर्षा हो ।। ५८ ।। ग्रह उदयास्त और. वक्री तथा मार्गी होनेके समय में चंद्रमा के साथ जलनाडीमें स्थित हो तो मेधके उदयकारक माना गया है ।।५।।
महाभुजंगसदृश सप्तनाडी वाला चक बनाकर इसमें सीधी रेखामें कृसिकादि अट्ठाईस नक्षत्र क्रमसे रखें ॥६० ॥ जिस नाडी पर चंद्रमा हो उस नाडी पर यदि केवल पाप और शुभ ग्रह हो या दोनों साथ हो तो वर्षा होती है ऐसा भद्रबाहु गुरु कहते हैं ॥६१॥ ऐसे. पूर्ण चंद्रमा अन्यग्रहोंसे युक्त होगा केवल हो तो भी वर्षा होती है । अकेला चन्द्रना.ही नाडी में स्थित हो तो दुर्दिन निश्चय से होता है ॥ ६२ ॥ इन नाडियों में अमृता दि
"Aho Shrutgyanam"