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मेघमहोदये कन्यायां खण्डवृष्टिश्च सर्वधान्यमहर्घता। तुलायामल्पवृष्टया स्याद् देशभङ्गो भयं पथि ॥६॥ वृश्चिके मध्यमं वर्षे ग्रामनाशोऽप्युपद्रवात् । सुभिक्षं धनुषि धान्यैर्मकरे धान्यपीडनम् ॥१४॥ कुम्भेऽल्पवृष्र्धािन्यानि महर्षाणि प्रजाभयम् । सुखसम्पत्तयो मीने मासं यावदिदं फलम् ॥६५॥ अमावसी यदा लग्ना तद्राशिरिह चिन्तये। शुक्लस्यादावुद्यवन्न चन्द्रास्तकथान्यथा ॥६६॥ वारनक्षत्रफलवत्तहिने राशिजं फलम् । अमावस्या विचारेण शेषं फलमिहोयताम् ॥९॥इति ॥ वैशाखे यदि वा ज्येष्ठे उत्तरस्यां विधूदये । बहुधा धान्यनिष्पत्त्यै भवेन्मेघमहोदयः ॥१८॥ म.गे हो ॥ ६२ ॥ कन्यासाश में हो तो खंडवर्षा और सब प्रकार के धान्य महँगे हो । तुलाराशिने हो तो वर्षा थोड़ी, देशका भंग और रास्ता में भय हो ॥ ३ ॥ वृश्चिकमें हो तो वर्ष मध्यम और उपद्रवोंसे गांव का विनाश हो । धनुराशिमें हो तो धान्यसे सुभिक्ष हो । मकरराशि में हो तो धान्यका विनाश हो ॥१४॥ कुंभराशि में हो तो वर्षा थोड़ी, धान्य महंगे और प्रजा को भय हो । मीनराशिमें हो तो सुख संपत्ति हो । यह एकमास तक का फल जानना ॥ ६५ ॥ किंतु चंद्रास्त का विचार अमावस जिस समय लगें उस समय राशिका विचार करना, जैसे शुक्लपक्षके दिमें उदय का विचार करते हैं वैसे चंदास्त का विचार है यह अन्यथा नहीं है ॥ १६ ॥ राशियों के फल वार नक्षत्र की तरह उस दिन विचार करें और शेष फल अमावसके विचारसे यहां कहें ॥१७॥
वैशाख और ज्येष्ठ मास में चंद्रमा का उदय उत्तर दिशा में हो तो धान्यकी प्राप्ति अधिक हो तथा मेघका उदय हो ॥१८॥ तिथिका प्रमाण
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