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चन्द्रचारफलम् तिथिः षष्टिघटीमाना त्र्यंशेऽस्या विंशनाडिकाः । वृहधिष्ण्यस्य चाद्यांशे नाड्यः पञ्चदश स्मृताः ॥१९॥ त्रिंशन्नाख्यो द्वितीयांशे तृतीयेंऽशे युगेषवः। राशिभोगात् तथैवेन्दोस्न्यंशाःकल्प्याःस्वयं धिया ॥१०॥ बृहदधिष्ण्यस्य चाधोंऽशश्चन्द्रतिथ्योरथांशकः । प्राये भवेत् त्रिधातौल्येसूर्यो धनुषि याति चेत् ॥१०॥ उत्तमाघस्तदा वर्षे रवौ शुभेऽक्षितेऽधिकः। यदा तु गुरुधिष्ण्यस्य कण्टकः स्याद् द्वितीयकः ॥१०२॥ चन्द्रराशेस्तिथेश्चापि कण्टकोऽथ द्वितीयकः। तदाप्युत्तम एवा? विज्ञातव्यो महर्द्धिकैः ॥१०॥ यदा तु गुरुधिष्पयस्य तृतीयकण्टको भवेत् । चन्द्रधिष्ण्यतिथेचापि तृतीयश्चोत्तमोत्तमः ॥१०४॥ बृहदृक्षाद्यभागश्चेचन्द्रतियोईितीयकः । तदापि चोत्तमाघः स्यान्नक्षत्रस्य स्वभावतः ॥१०॥ साठ घड़ी और उसका तृतीयांश वीस घड़ी हैं । बृहत्संज्ञक नक्षत्रका प्राद्य अंश पंद्रह घड़ी का होता है | ह ॥ द्वितीयांश तीस घड़ी का और तृतीयांश पैतालीस घड़ी का होता है । इसी त ह राशिके भोगसे चंद्रमाका तीन अंश स्वयं बुद्धिसे विचार लेना ॥१०॥ यदि सूर्य धनुराशि पर हो और बृहत् संज्ञकनक्षत्र चंद्रमा और तिथि ये तीनों आद्य अंश में हो तो ॥ १०१ ॥ उस वर्ष में उत्तन धान्य प्राति हो, यदि सूर्य शुभग्रहों से देखा जाता हो तो विशेष अधिक धान्य प्राप्ति हो । यदि बृहद्नक्षत्र का दूसरा अंश और चंद्रराशि तथा तिथि का भी दूसरा अंश हो तो उत्तन प्राप्ति धनवानोंको जाननी ॥१०२॥१०३॥ यदि बृहदनक्षत्रका तीसरा अंश हो और चंद्रमा तथा तिथि का भी तीसरा अंश हो तो उत्तमोत्तम प्राप्ति हो ॥१०४॥ बृहदुनक्षत्रका प्रथम अंश और चंद्रमा तथा तिथिका दूसरा अंश
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