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चन्द्रचारफलम् केवलैः सौम्यैः पापैर्वा ग्रहैयुक्तो यदा शशी । दत्ते सुस्थितपानीयं दुर्दिनं भवति ध्रुवम् ॥५१॥ नाडीस्वामियुतश्चन्द्रस्तद् दृष्टो वा जलप्रदः । शुक्रदृष्टो विशेषेण यदि क्षीणो न जायते ॥५२॥ पीयूषनाडीगश्चन्द्रो युक्तः खेटैः शुभाशुभैः । मुञ्चते तत्र पानीयं दिनान्येकत्र सप्तकम् ॥५३॥ दिनत्रयं पूर्णयांगे साई दिनं तदद्रके। पादोनयांगे दिवसो दिनार्द्ध पादतोऽम्बुदः ॥५४॥ निर्जला जलदा नाडी भवेद्योगे शुभाधिके । ऋराधिकसमायोगे जलदाप्यम्बुबाधिका ॥५॥ सौम्यनाडीगताः सर्वे वृष्टिदाः स्युर्दिनत्रये। शेषनाडीगताः सर्वे दृष्टवृष्टिप्रदा ग्रहाः ॥५॥ और सौम्य ग्रह स्थित हो तो जितना अंश चंद्रमा रहे उतना समय महान् वर्षा हो ॥५०॥ यदि चंद्रमा केवल सौम्य या पाप ग्रहों से युक्त हो तो वर्षा अच्छी हो तथा दुर्दिन निश्चय करके हो ॥ ५१ ॥ पंद्रना नाडीके स्वामीके साथ हो या दृट हो तो जलायक हो.।है, यदि शुक्रसे दृष्ट हो तो विशेष करके जलदायक होता है किंतु चंद्राक्षीग न हो तो ॥५२॥
मृतनाडी पर चंद्रमा शुभाशुभ ग्रहों से युक्त हो तो एक साथ सात दिन तक वर्षा हो ॥५३॥ पूर्ण योग हो तो तीन दिन, आबा योग हो तो डेढ दिन, पावयोग हो तो एक दिन और पावसे का यो। हो तो आधा दिन वर्षा होती है ॥५४॥ शुभग्रहों का योग अधिक हो तो निर्जला नाडी भी जलदायक हो जाती है और क्रू ग्रहोंका योग अधिक हो तो जलदायकनाडी भी वर्षाकी बाधक होती है ॥५५॥ सौम्यनाडी पर सब ग्रह हो तो तीन दिन में वृष्टिदायक होते हैं और बाकी की नाडी पर सब ग्रह हों तो दुष्ट वर्षादायक होते हैं ॥५६॥ याम्यनाडी पर क्र ग्रह स्थित हो तो विलंब से
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