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चन्द्रचारफलम्
(४१७)
लग्न शीतकरयोर्बलाबलादी हितं विदधतां सदा हितम् ||३|| बालबोधे तु-तिथिरेकगुणा प्रोक्ता वारस्तस्पाञ्चतुर्गुणः । तहषोडशगुणं धिष्ण्यं योगः शतगुणस्तथा ॥४॥ सहस्राधिगुणः सूर्यो लक्षाधिकगुणः शशी । दक्षजातिप्रियासाध्यो दक्षजातिप्रियस्ततः ॥५॥ बृहत्सु धान्यं कुरुते समर्धे जघन्यधिष्ण्येऽभ्युदितो महर्षम् । समेषु विष्ण्येषु समं हिमांशु- वेदन्त्यसन्दिग्धमिदं महान्तः | ६| फाल्गुनेऽर्के यदोदेति द्वितीया चन्द्रमास्तदा । राजा सुखी बहुर्वायुर्वहेरुपद्रवो महान् ||७|| तीडागमो बालरोगः करकापतनं भुवि । धान्यपीडा वनचरदुःखं धातुमहर्घना ॥८॥ सोमवारे घना मेघाभ्छत्रभङ्गान् महारणः ।
लग्नबल हजाग्गुना है। इसलिये लग्न और चंद्रमा का बलाबल का विचार कर सर्वशहितको धारण करना चाहिये || ३ || बालबोध में भी कहा है कि- तिथि एकगुना, इससे वारे चारगुना, इससे नक्षत्र सोलहगुना, इससे योग शतगुना ॥ ४ ॥ इससे सूर्य दूगुना और सूर्यसे चन्द्रमा लाखगुना अधिक फल देनेवाला है, वह चंद्रमा दक्ष जातिकी प्रियाओंसे साध्य है इसलिए दक्षजाति का प्रिय है ॥ ५ ॥ बृहत्संज्ञक नक्षत्र पर चंद्रमा उदय हो तो धान्य सस्ता, जघन्य संज्ञक नक्षत्र पर उदय हो तो महँगा और समसंनक्षत्र र उदय हो तो समान हो, यह विद्वानों ने संदेह रहित कहा है ॥ ६ ॥ फाल्गुन में रविवार को द्वितीया के दिन चंद्रमा उदय हो तो राजा सुखी, वायु अधिक, अग्नि का उपद्रव अधिक रहे ॥ ७ ॥ दीड्डी का भागमन, बालकों को रोग, पृथ्वीवर भोला गिरे, धान्य का विनाश, वनचर जीवको दु.ख और धातु महँगी हो ॥ ८ ॥ सोमवार को उदय हो तो बर्चा अधिक, छत्रभंग, महायुद्ध लोक सुखी, गौमों का दूध अधिक और धान्य
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