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मेघमहोदये
बघे गरे गजारूढो बालवे षणिजे वृषे ॥२७॥ किंस्तुन्ने शकुनी जातौ कौलवे करणे तथा।
भास्वानश्वाधिरूढः स्यात् तमसामुपशामने ॥२८॥ संक्रान्तिफलम् ----- गजेस्वस्था मही मेधै-महिषे मृत्युमादिशेत् । अश्वारोहे महायुद्धं वृषभे बहुधान्यता ॥२६॥ सिंहे महर्घमन्नं स्यादेशे चौरभयं महत् ।
एवं वस्त्रादयो भावा भावनीया दिशाऽनया ॥३०॥ त्रैलोक्यदीपके-धारे चतुर्थे यदि पञ्चमे वा,
धिष्ण्ये तृतीये यदि पञ्चमे वा । पूर्वक्रमात् संक्रमते यदार्क
स्तदा च दौस्थ्यं नृपविड्वरं च ॥३१॥ संकान्तिधिष्ण्याचदि षष्ठसंख्ये,जायेत धिष्ण्ये रविसंक्रमश्चेत् । सदापि दौस्थ्यं नृपविड्वरश्च, त्रिभागतुच्छा भवतीह भूमिः॥
प्रथान्तर- विष्टि और चतुष्पद करणमें व्याघ्र, नाग और तैतिल करणमें महिष, बव और गर करण में हाथी, बालव और वणिज करण में वृष, ये वाहन हैं ॥ २७ ॥ किंस्तुन्न, शकुनि तथा कौलव करणमें अंधकार को नाश करने वाले सूर्यका अश्व वाहन है ॥२८॥
___ संक्रांति का हाथी बाहन हो तो पृथ्वी वर्षा से सुखमय हो । महिष वाहन हो तो मरण, घोड़े का वाहन हो तो बड़ा युद्ध, वृषभ वाहन हो तो धान्य बहुत ॥२६॥ सिंह वाहनसे अनाज महँगे हो और देशमें चोर का बड़ा भय हो । इसी तरह वस्त्र आदिका भी विचार कर लेना ॥३०॥
प्रथम सूर्य संक्रान्तिसे दूसरी सूर्य संक्रान्ति यदि चौधा या पांचवां वार में तथा तीसरा या पांचवां नक्षत्र में प्रवेश हो तो दुःख और राजाओं का विप्लव हो ॥३१॥ छ नक्षत्रमें संक्रमण हो तो भी दुःख और राजाओं का
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