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विपुलाश्चपला नाम्ना कुलत्थहानिः पुनर्भीमे ॥८८॥
संक्रान्तयो द्वादश मासबद्धा:, . स्वमासमोक्षेण शुभाशुभानि । वारैः परं सप्तभिरादिशन्ति,
विशन्ति मासं यदि चान्यमेवम् ॥८६॥ बालबोधे पुनः- संक्रान्तिः स्याद्यदा पौषे रविवारेण संयुता । द्विगुणं प्राक्तनाद्धान्ये मूल्यमाहुर्महाधियः ॥ ६०॥ शनौ त्रिगुणता मूल्ये मङ्गले च चतुर्गुणम् । समानं बुधशुक्राभ्यां मूल्यार्थं गुरुसोमयोः ॥ ९१ ॥ पाठान्तरे - त्रिगुणं भूसुते सौम्ये शनिवारे चतुर्गुगाम् । सोमे शुक्रे तुल्यमूल्यमर्द्धमूल्यं बृहस्पतौ ॥६२॥ ग्रन्थान्तरे
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"जीने रविसंक्रमणे ससिगुरुसुक्केहि होइ सुभिक्खं । बहु पवनो रविवारे चउपयपरिपीडणं भोमे ॥ ६३॥
शालि जूर्गा आदि धान्यसे पृथ्वी पूर्ण हो, चौला बहुत और कुलथी की हानि हो ॥ ८८ ॥ जो मासबद्ध बान्ह संक्रांतियें हैं वे अपने २ मासको छोड़ने वाद सात वार द्वारा शुभाशुभ फलको कहती हैं, इसी तरह दूसरे मांस में प्रवेश करती है ॥ ८६ ॥
यदि पौषमासको संक्रांति रविवार को हो तो पहलेका धान्य दूने मूल्य से बिकें ॥ ६० ॥ शनिवार हो तो तीन गुने, मंगल हो तो चौगुने, बुध या शुक्र हो तो समान और गुरु या सोमवार हो तो अर्द्धमूल से बिकें ॥ ६१ ॥ प्रकारान्तर से - मंगल या बुब हो तो त्रिगुणे, शनिवार हो तो चौगुने, सोम या शुक्र हो तो समान और गुरुवार हो तो अर्द्धमूल्य से बिकें ॥ ६२ ॥ ग्रंथान्तर में - मीन संक्रांतिको सोम गुरु या शुक्रवार हो तो सुभिक्ष हो, रविवार हो तो पवन अधिक चलें, मंगलवार हो तो पशुओं को पीडा हों ॥
"Aho Shrutgyanam"