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सूर्यचारकथनम्
विचित्रं जायते वर्ष वैशाखज्येष्ठयोस्तथा" ॥१३१॥ वैशाख कृष्णपक्षान्त - वृपसंक्रमणे रविः ।
वृषे चन्द्रस्तदा ज्ञेयं सर्वक्लेशक्षयात् सुखम् ||१३२ || यदि स्याज्ज्येष्ठपञ्चम्यां वृषसंक्रमणादनु । दिनक्षयान्तर्जलदस्तदा सुभिक्षनिर्णयः ॥१३३॥ आषाढे चैव संक्रान्तौ यदि वर्षति माधवः । व्याधिरुत्पद्यते घोरः श्रावणे शोभनं तदा ॥ १३४ ॥ आषाढे कर्कसंक्रान्तौ शनिवारो भवेद्यति । तदा दुर्भिक्षमादेश्यं धान्यस्यापि महता ॥ १३५ ॥ * श्रावणे कर्कसंक्रान्तिर्दिने जलधरागमात् । न तीडा भूषका नैव जायन्ते तत्र वत्सरे ॥ १३६ ॥ दशम्यां शनिना युक्तः श्रावणे सिंहसंक्रमः । अनन्तधान्यनिष्पत्तिर्भवेन्मेघमहोदयः ॥ १३७॥
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हो तो भयंकर
वैशाख और ज्येष्ठ की संक्रांतिको वर्षा हो तो विचित्र वर्ष होता है ॥ १३१ ॥ वैशाख कृष्णपक्ष में वृषसंक्रांति हो उस दिन वृष का चंद्रमा भी हो तो समस्त क्लेशों का क्षय होकर सुख होता है ॥ १३२ ॥ यदि ज्येष्ठ मासकी पंचमी को वृषसंक्रांति हो उससे दो दिन के भीतर वर्षा हो तो सुभिक्ष होता है ॥ १३३ ॥ आषाढ मास की संक्रांति को यदि वर्षा व्याधि हो और श्रावण में शुभ हो ॥ १३४ ॥ आषाढ में कर्क संक्रांति को शनिवार हो तो दुर्भिक्ष तथा धान्य महँगे हो ॥ १३५ ॥ श्रावण की कर्क - संतिके दिन वर्षा हो तो टिड्डी आदिका उपद्रव न हो ॥ १३६ ॥ श्रावण में दशमी और सिंहसंक्रांति शनिवार को हो तो धान्य बहुत उत्पन्न हों और मेघवर्षा हो ॥ १३७॥ भाद्रपदमास में सिंहसंक्रांतिको वर्षा हो तो आगे वर्षा
*टी-श्रावणे कर्कसंक्रान्तौ यदि वर्षति माधवः । व्याधि स कुरुते घोरां बहुधान्यां वसुन्धराम् ॥
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