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सूर्यचारकथनम्
तो जाणे जे जुगप्रलय, जोइस एह प्रमाण ॥ १४४ ॥ *मार्गशीर्षे धनूराशौ यदा याति दिवाकरः । तदा वर्षे च निर्दिग्धं वृश्चिकेऽर्के सुखावहः ॥ १४५ ॥ द्वादश्यां पश्चिमे पक्षे मार्गशीर्षे च क्रमे । यदि मङ्गलवारः स्याद् दुःखाय जगतो मतः ॥ १४६ ॥ पौषमासस्य संक्रान्ती यदा मेघमहोदयः ।
बहुक्षीरास्तदा गावो वसुधा बहुधान्यदा ॥ १४७ ॥ पौषमासे यदा भानो रविवारेण संक्रमः । हाहाभूतं जगत्सर्व दुर्भिक्षं नात्र संशयः ॥ १४८ ॥ माघमासे त्रयोदश्यां कुम्भे संक्रमणे रवेः । रोहिणी सूर्यवारेण कार्त्तिकान्ते महताम् ॥ १४६ ॥ फाल्गुने चैत्रसंक्रान्तौ यदि वर्षति माधवः । विचित्रं जायते सस्यं माधवज्येष्ठयोरपि ॥ १५० ॥ ज्योतिषका प्रमाण है ॥ १४४ ॥ मार्गशीर्ष में धनसंक्रांतिको वर्षा हो तो वर्ष पुष्ट हो और वृश्चिकसंक्रांति में हो तो सुख हो ॥ १४५ ॥ मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी और संक्रांति मंगलवार को हो तो जगत् का दुःखके लिये जानना चाहिये ॥ १४६ ॥ पौष मास्की संक्रांति को वर्षा हो तो गौ बहुत दूध दें और पृथ्वी बहुत धारयवाली हो ॥ १४७ ॥ पौष की सूर्यसंकांति रविवार को हो तो समस्त जगत् में हाहाकार और दुर्भिक्ष हो इसमें संदेह नहीं ॥ १४८ ॥ माघ मास में त्रयोदशी को कुंमसंक्रांति और रविवार युक्त रोहिणी नक्षत्र भी हो तो कार्तिक के अंत में अन्न महँगे हों ॥ १४६ ॥ फाल्गुन और चैत्रमें संक्रांति के दिन वर्षा हो तो अनेक प्रकार के अनाज पैदा हों, इसी तरह वैशाख और ज्येष्टका फल जानना ॥ १५० ॥ यदि मेष सूर्य होने पर अश्विनी आदि दश नक्षत्र याने दश दिनों में वर्षा हो *टी- मार्गशीर्षे धन्वराणौ यदा याति दिवाकरः । तदा दाहों लोकें 1
"Aho Shrutgyanam"
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