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मेघमहोदये
(४०२ )
कर्पासे फलवस्तुनीक्षुरसजे माशिष्ठकेऽत्यादरः, सोमे धान्यसमर्पता कविगुरुज्ञेषु प्रियाः स्यू रसाः ॥७८॥ ज्येष्ठे श्री मिथुनार्कतः शनिकुजादित्येषु पापाशयो, रोगोऽग्निज्वलनादिजं भयमपि प्रायो महर्धाः कणाः । सन्तुष्टा वसुधा सुधाकरसुते वस्तु प्रियं सिन्धुजं,
दुर्भिक्षं शशिजीव भार्गवचलात् सार्वत्रिकं सूच्यताम् ॥७६॥ आषाढे कर्कसंक्रान्तौ क्रूरवारेऽतिवर्षणम् । क्षत्रियाणां क्षयोऽन्योऽन्यं गुरौ तु प्रबलोऽनिलः ||८०|| सोमे सौम्ये तथा शुक्रे जलस्नातं भुवस्तलम् । धान्यं समर्घमायाति परदेशाज्जने सुखम् ॥८१॥ सिंहेऽर्के श्रावणे भौमे शनौ वा बहुवृष्टये । तुच्छधान्पविनाशाय वायुपीडाकरो रबौ ॥८२॥ सममाज्यं देवेज्ये गुडतैलमहर्चता ।
कारण गेहूँ दुर्लभ हो, कपास, फल वस्तु, ईक्षुरस के पदार्थ, मंजीठ तेज हो । सोमवार हो तो धान्य सस्ते हो । शुक्र गुरु या बुधवार हो तो अच्छे मधुर रस उत्पन्न हों ॥ ७८ ॥ ज्येष्ठमासमें मिथुनसंक्रांति शनि मंगल या रविवारको हो, तो पापकारक रोग हो, अमिका भय और प्रायः धान्य भाव तेज हो । बुधवारको हो तो पृथ्वी संतुष्ट हो तथा सिंधुसे उत्पन्न होनेवाली वस्तुका भार हो । चंद्रमा बृहस्पति या शुक्रवार को हो तो सर्वत्र दुर्भिक्षका सूचन है ॥ ७६ ॥ आषाढ मास में कर्कसंक्रांति क्रूर वारकी हो तो अधिक वर्षा हो, क्षत्रियों का परस्पर क्षय हो । गुरुवारकी हो तो प्रचल पवन चलें ॥ ८० ॥ सोम बुध या शुक्रवार हो तो वर्षा अच्छी हो, धान्य सस्ते हो और परदेश से लोगों को मुख हो ॥ ८१ ॥ श्रावणमास में सिंहसंक्रांति मंगल या शनिवार की हो तो बहुत वर्षा हो और तुच्छ धान्यका नाश हो । रविवार की हो तो वायुका उपद्रव हो ॥ ८२ ॥ गुरुवार की हो तो घी सस्ते हो और गुड सेल
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