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मेघमहोदये गुरौ विरोध स्वकुले दिमास्याम् । युगन्धरीवल्लमसरधान्ये,
हिमादिनाशश्चमकेऽपि सोमे ॥७॥ देवे गुरौ बादर एव शुक्रे,
माघेऽथ कुम्भे दिनकृत्प्रसङ्गे । पृथ्वीभयं विग्रह एव घोर
चतुष्पदानाभतिशायि कष्टम् ॥७॥ तथा वृषभसङ्कहो महिषविक्रयो वा शनी,
रणः स्वपरमारणः क्षितिपतिग्रहान्मङ्गले । रवावपि तथा कथा गुरुबुधेन्दुशुक्रागमात् ,
समानविषमा कचित् सकललोकनिश्शोकता ॥७२॥ कुलत्थमाषमुद्गानां दिक्र रस्तुवरीकणाः । युगन्धेरीमसुराद्याः समर्घा देशसुस्थता ॥७३॥ घृतकसितैलादि गुडखण्डेक्षुशर्कराः । सङ्गहाद्विगुणो लाभस्तेषां मासद्धये गते ॥७४|| लोग कहते है । गुरुवार हो तो अपने कुल में विरोध हो । सोमवार हो तो दो महीने में युगंधरी (जुआर) वाल मसूा धान्य और चणे इनका हिम से विनाश हो ॥ ७० ॥ माघ मासमें कुंभर क्रांति को गुरु या शुक्रवार हो तो पृथ्वीमें भय, घोर विग्रह और पशुओं को कष्ट हो ॥ ७१ ॥ शनिवार हो तो वृषभ का संग्रह करना और महिषको बेचना, मंगलवार तथा रविवार हो तो राजाओंमें अन्योऽन्य घोर युद्ध हो। गुरु बुध चंद्रमा या शुक्र.. वार हो तो कचित्. समान या विषम रहें, समस्त लोक शोक ( चिन्ताः) रहित हो ॥ ७२ ॥ कुलथी, उडद, मूंगको बेच देना चाहिये, तूपरी, युगंधरी (जुआर) मसूर आदि सस्ते हो, देश सुखी हो ॥ ७३ ॥ घी कपास तेल गुड खाड ईक्षु सक्कर अादिका संग्रह करनेले दो महीने बाद.
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