________________
(४०८)
मेघमहोदये
वैशाखस्य तृतीयायां संक्रान्तिर्यदि जायते । रोगपीडैकमासे स्याद् यद्वा मेघमहोदयः ॥११३॥ श्रावणे कर्कसंक्रान्त्यां जाते मेघमहोदये । सप्तमासान् सुभिक्षं स्याद नान्यथा जिनभाषितम् ॥ ११४॥ बालबोधे तु
नन्दायां मेष संक्रान्तिरल्पवृष्टिकरी मता ।
भद्रायां राजयुद्धाय जयायां व्याधये नृणाम् ॥ ११५ ॥ रिक्तायां पशुघाताय पूर्णायां धान्यवर्द्धिनी । इत्येतद्वालयोघोक्तं बहुशास्त्रेषु सम्मतम् ॥ ११६ ॥ चोथी नवमीने चउदसी, जो रवि संक्रम होय | देशभंगदलदुःख धरणा, जण जण दह दिन जोय ॥ ११७॥ मण्डलानुसारिनक्षत्रवारयोगार्थ :
--
"अग्निमण्डलनक्षत्रे यदा संक्रमते रविः ।
सहितो भौमवारेण सस्पृहा धातुजातयः ॥ ११८ ॥
दमें लाभ हो ॥ ११२ ॥ वैशाख तृतीया को यदि संक्रांति हो तो एकमास रोगसे पीडा हो या मेघका उदय हो ॥ ११३ ॥ श्रावण में कर्कतक्रांति के दिन मेघका उदय होतो सात मास सुभिक्ष हो यह जिन वचन अन्यथान हो ।। ११४ ॥ यदि मेषसंक्रांति नंदा. १-६-११ तिथि को हो तो वर्षा थोड़ी हो । भद्रा २ ७ १२ तिथि को हो तो राजयुद्ध हो । जया ३.८-१३ तिथि को हो तो मनुष्यों को रोग हो ।। ११५ ।। रिक्ता ४.६ १४ तिथिको हो तो पशुओंका बात हो, पूर्णा- ५-१० १५ तिथिको हो तो वान्यकी वृद्धि हो । ये बालबोधमें कहा हुआ बहुतसे शास्त्रों से सम्मत है ॥ ११६ ॥ चोथ नवमी और चौदशके दिन सूर्यसंक्रांति हो तो देशका भंग और हरएक जगह मनुष्यों को बहुत दुःख हो ॥ १.१७ ॥
यदि सूर्य संक्रांति अग्निमडल में हो और साथ मंगलवार भी हो तो समस्त
"Aho Shrutgyanam"