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महर्क्षे मिश्रसंयुक्तेऽप्युपविष्टेऽपि संक्रमः । अर्धसाम्यं तदा वाच्यं सूर्यसंक्रान्तिलक्षणैः ॥४९॥ यदा धनुषि मार्त्तण्ड: संक्रामति तदा विधुः । चिलोक्यते बृहद्विषये किं मध्ये किं जघन्यके ॥५०॥ उत्तम सुभिक्षं स्यान्मध्यमे समता मता । जघन्येषु महर्चे स्यादेवं संक्रमणात् फलम् ॥५१॥ वेद याति मेषादौ विधौ सप्तमराशिगे । त्रिद्वयेकषट्शराम्भोधिमासेष्वधः क्रमाद्भवेत् ||५२|| मेषे रवौ तुलाचन्द्रः षण्मासे धान्यलाभदः । वृषेऽर्के वृश्चिके चन्द्रस्तुर्यमासेऽन्नलाभदः ||५३ || मिथुनेsh धनुञ्चन्द्रस्तिलतैलान्नसङ्ग्रहात् । मासैश्चतुर्भिर्लाभाय सकुरैश्चेन्न विद्वयते ॥५४॥
हो ॥ ४८ ॥ यदि उपविष्ट (बैठी हुई) संक्रांति बृहत्संज्ञक या मिश्रसंज्ञक नक्षत्र में हो तो सूर्य संक्रांति के लक्षणोंसे मूल्यका समान भाव कहना ॥ ४६ ॥ जब धनसंक्रांति हो उस दिन चन्द्रमा का विचार करना चाहिये कि बृहसंज्ञक मध्यसंज्ञक या जवन्यसंज्ञक नक्षत्रों में है ॥ ५० ॥ यदि बृहत्संज्ञक नक्षत्रों में हो तो सुभिक्ष, मध्यम संज्ञक नक्षत्रों में हो तो मध्यम (समान) और जघन्य• संज्ञक नक्षत्रों में हो तो महँगे फल कहना ॥ ५१ ॥ जब सूर्य मेषादि राशियों में प्रवेश होतच चन्द्रमा सक्षम राशि पर हो तो क्रम से तीन, दो, एक, छह, पांच और चार महीनों में धान्यादिकी महता हो ॥५२॥
मेष संक्रांति दिन तुलाका चन्द्रामा हो तो छड़े महीने धान्यका लाभ हो । वृषकी संक्रांति के दिन वृश्चिकका चन्द्रमा हो तो चौथे महीने अनका लाभ हो ॥ ५३ ॥ मिथुन संक्रांति के दिन धनका चन्द्रमा हो तो तिल तेल तथा अन्नका संग्रह करने से चौथे महीने लाभ हो, परंतु कूरग्रहसे वे - वित हो तो लाभ न हो ॥ ५४ ॥ कर्कसंक्रांतिको मकर का चन्द्रमा हो तो
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