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सूर्यचारकथनम्
निविष्टो वाणिजे विष्टयां बालवे वा गरे बवे ॥१२॥ ऊवस्थितः स्थाच्छकुनौ किंस्तुन्ने कौलवे रविः । जघन्यमध्योत्कृष्टत्वं धान्यार्थवृष्टिषु क्रमात् ॥१३॥ संक्रान्तिमुहूर्तविचार:
भेषु क्षणान् पञ्चदशेन्द्ररौद्र___ वायव्यसान्तकवारुणेषु । त्रिवान् विशाखादितिभध्रुवेषु,
शेषेषु तु त्रिंशतमामनन्ति ॥१४॥ हीने मुहूर्तमे हीनं सम साम्येऽधिकेऽधिकम् । संक्रान्तिदिनभं ज्ञात्वा बुधो बक्ति शुभाशुभम् ॥१५॥ मृगकर्काजगोमीन-संक्रान्तिनिशि सौख्यदा । शेषाः सप्तदिने श्रेष्ठा अशुभाय विपर्ययः ॥१६॥ करण में रवि हो तो ऊर्च ( खड़ी) संक्रांति होती हैं ये तीन प्रकार की संक्रांति अनुक्रम से जघन्य मध्यम और उत्तम है; ये धान्य मूल वर्षा के लिये फलदायक है -१२-१३॥
ज्येष्ठा, आर्दा, स्वाति, आश्लेषा, भरणी और शतभिषा ये छह नक्षत्र पंद्रह मुह वाले हैं । विशाखा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा और रोहिणी ये छह नक्षत्र ४५ पैतालीस मुहर्तवाले हैं, और बाकी के- अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा और रेवती ये पंद्रह नक्षत्र तीस ३० मुहूत्र्तवाले हैं ॥ १४ ॥ हीन याने पंद्रह मुहर्त्तवाले नक्षत्रों में हीन, समान मुहूर्तावाले नक्षत्रोंमें समान और अधिक मुहवाले नक्षत्रों में अधिक ऐसा संक्रांतिदिनके नक्षत्रको जानकर पंडित शुभाशुभको कहें ।। १५ ॥ मकर, कर्क, मेष, वृष और मीन ये पांच संक्रांति रात्रि में हो तो सुखदायक हैं और बाकी सात संक्रांति दिनमें हो तो श्रेष्ठ
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