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मेघमहोदये
यतः-अमावसीइ ति दिया होइ जयारिक्खट्ट उत्तरातिनि। रेवइधणि पुणब्बसु दुभिक्खं करइ मासम्नि ॥१४८॥ ग्रन्थान्तरे-- अहह वारुण चित्तह साई, कत्तिय भरणि अमावसि भाई। इण नक्ख ते जो तिथि जगी, निश्चय अर्घ वधावे दूणी ।। विरुद्धवारनक्षत्रेऽमावस्यो यहवोऽशुभाः।। वार्षिकं फलमादाः शेषाः मासफलप्रदाः ।।१५०॥ इति । श्रावणे शुक्लसप्तम्यां स्वातियोगसुभिक्षकृत् । श्रवणं पूर्णिमायां स्या-द्धान्यैरानन्दिताः प्रजाः ॥१५१॥ यत:-आखा रोहिण नवि मिले, पोसी मूल न होय । श्रावणि श्रवण न पामीइ, मही डोलती जोय ॥१५२॥ ज्येष्ठस्य प्रतिपद्वार-फलं प्राकथितं यथा । को नक्षत्र का फल कोई प्राचार्य कहते हैं ॥ १४७ ॥ मेघमालामें कहा है कि- अमावस के दिन तीनों उत्तरा, रेवती, धनिष्ठा या पुनर्वसु नक्षत्र हो तो एक मास दुर्भिक्ष करे ।। १४८ ॥ ग्रंथान्तर में- आर्द्रा, शतभिषा, चित्रा, स्वाति, कृत्तिका और भरणी इन नक्षत्रों में यदि अमावस आजाय और इन नक्षत्रोंसे तिथि जितनी न्यून हो उनसे दूना मूल्यसे धान्य बिके ॥१४६॥ विरुद्ध वार नक्षत्रों में अमावस हो तो बहुत अशुभ होती है। यह श्रावणकी अमावस वार्षिक फलदायक है और बाकी की मासफलदायक हैं ॥१५०॥ श्रावण शुक्ल सप्तमी को स्वाति नक्षत्र हो तो सुभिक्षकारक है । श्रावणपूर्णिमा को श्रवणनक्षत्र हो तो धान्य प्राप्ति बहुत हो जिससे प्रजा भानंदित हो ॥१५१॥ कहा है कि - आषाढ पूर्णिमाको रोहिणी, पोषपूर्णिमा को मूल और श्रावण पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र न हो तो पृथ्वी डामाडोल याने दुःखी हो ॥ १५२ ।। जैसा ज्येष्ठमास की प्रतिपदा का फल पहले कहा है वैसा श्रावणमासकी प्रतिपदाका फल राहां भी समझ लेना
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