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मेघमहोदये संगृह्यन्ते च धान्यानि पुरो लाभाय तान्यपि ॥१८॥ * आश्विने शुक्लपञ्चम्यां सोमे हस्तसमागमे । गन्तव्य मालवस्थाने निर्जला जलदायिनी ॥१८४॥ सप्तम्यां शनियुक्तायां सिते पक्षे यदाश्चिने । श्रवंग वा धनिष्ठा चेजगतो नाशकारणम् ॥१८॥ आश्विने च बुधेऽष्टम्यां विधेयो घृतसंग्रहः । कार्तिके विक्रयात् तस्य सम्पदः स्युः पदे पदे ॥१८६॥ नवम्यामाश्विने शुक्ले कुजवारेण संगती। मुद्ग कार्पास चपला-भाषादेः संग्रहो मतः ॥१८७॥ द्विगुणस्तु भवेल्लाभो चैत्रमासेऽथ विक्रये।
आश्विने दशमी भौमे भूम्यां व्याधिरबाधितः ॥१८॥ xएकादश्यां शनौ तस्मि छत्रभङ्गोऽथवा भुवि । चतुर्थी को रविवार हो तो बी बेचना चाहिये और धान्य का संग्रह करना चाहिये जिससे आगे लाभ होगा !! १८३ ।। आश्विन शुक्ल पंचमी सोमवारके दिन और हस्त नक्षत्र पर सूर्य हो तब वर्षा होना अच्छा नहीं, यदि बरसे तो मालन देश में जाना चाहिये वहां निर्जलाभी जल देनेवाली है ॥ १८४ ॥ आश्विन शुक्ल सप्तमी शनिवार को श्रवण या धनिष्ठा नक्षत्र हो तो जगत् का नाशकारक होता है ।। १८५ ॥ शुक्लाष्टमीको बुधवार हो तो घी का संग्रह करना चाहिये । उसको कार्तिक में बेचने से विशेष लाभ हो ॥१८६॥ शुक्ल नवमीको मंगलवार हो तो मूंग, कपास, चौला उडद आदिका संग्रह करके ॥ १८७ || उसको चैत्र मासमें बेचनेसे दूना लाभ हो । आश्विन शुक्ल दशमी को मंगलवार हो तो पृथ्वी पर व्याधि (रोग) की पीड़ा हो ॥ १८८॥ आश्विन शुक्ल एकादशी को शनिवार हो * टी-अत्रापिआश्विने शुक्लपञ्चम्यांसोमवारेसतिसूर्येच हस्तेसमागते वृष्टिन शुभा, निर्जला पञ्चमी जलदायिनीत्यर्थः ।
टी-संवत् १७४३ आश्विनसित ११ तिथौ शनिर्विद्यापुरदुर्गमाः ।
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