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मेघमहोदये
साम्रायां माघपूर्णायां धान्यसङ्ग्रह इष्यते । विक्रेयः सप्तमे मासे तस्य लाभाय सम्भवेत् ॥२७०॥ फाल्गुनी पूर्णिमा साभ्रा सवृष्टिर्वा सगर्जिता । धान्यसङ्ग्रहणान्मासे सप्तमे लाभदायिनी ॥ २७९ ॥ वर्षादिनसंख्या
चित्त अमावस दिवहि सुरगुरुवारेण चित्तमाईहिं । तह होइ चित्तवरिसा विसाहि अणुराह वइसाहा || २७२ ॥ जिट्ठा मूले जे पूसा उसा य गुरु य आसाढे । सवण घट्ठिा सर्याभिसि होइ तहा सावणे वरिसा | २७३॥ पूभा उभा य रेवइ भद्दवमासे सुहाइ तह वरिला । अस्सणि असणि भरणीइ कत्तिय रोहिणी य कत्तिए । २७४
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हो ॥ २६६ ॥ मात्र मासकी पूर्णिमाको बादल हो तो धान्यका संग्रह करना, सातवें महीने बेचने से लाभ हो ॥ २७० ॥ फाल्गुन पूर्णिमा बादल वर्षा और गर्जना सहित हो तो धान्य का संग्रह करनेसे सातवें महीने लाभ हो ॥२७१ ॥ इति द्वादशपूर्णिमा विचारः ॥
चैत्र मास में अमावस के दिन या चित्रा या स्वाति नक्षत्र के दिन गुरुवार हो तो चित्र ( अच्छी ) वर्षा हो । इस तरह वैशाख में वि या अनुरावा । ज्येष्ठ में ज्येष्ठा या मूल | आषाढ में पूर्वाषाढा या षाढा | श्रावण में श्रवण, धनिष्ठा या शतभिषा । भाद्रपद में पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद या रेवती । आश्विन में अश्विनी या भरणी । कात्तिकमें कृत्तिका या रोहिणी | मार्गशीर्ष में मृगशीर्ष, आर्द्रा या पुनर्वसु । पौष में पुष्य या
*टी-श्रीहीरसूरयः प्राहु:- माही पूनिम निरमली, तो सुहंगो आषाढ । कण वेची पोतो करे, व्याजे दाम में काढ ॥ १॥
अन्यत्रापि - पूनम माही निरसली, अन्न सुहंगो अठमास । जिण पुहरे वादल हुवे, अन्न
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