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तिथिफलकथनम्
(३८५)
मिग हा य पुणन्वसु वह वरिसा
मिगसिरमासे । पुस्स असलेस सुरगुरु बरिसा संभवइ तह पोसे ||२७५ || माहे महासु वरिसा पुष्का उष्फाय हस्थिफरगुणए । वरिसाए इय नाणं भगियं गणहारिहीरेगा ॥ २७६ ॥ गिरधरानन्दे ऽकालवर्षाफलम् --
पौषादिचतुरो मासान् वृष्टिः प्रोक्ता त्वकालजा । गर्भयोगं विना नेष्टा नृनं पशुपदाङ्किता ||२७७|| यावन्नाकालसम्भूतै विद्युद्गर्जितवर्षणैः । त्रिविधेरपि चोत्पातै वृष्टेरासप्तरात्रतः ॥ २७८ ॥ पौषे दिनत्रयं वर्ज्य मावे त्वात्ययिके द्वयम् । फाल्गुने दिनमेकं तु चैत्रे तु घटिकाद्वयम् ॥ २७६ ॥ श्रीहीरसूरिकृत मेघमालायाम्-
माहाइ तिन्नि वासर फग्गुगादिाजुयलं चित्तदिणमेगं ।
आश्लेषा | माघ में मघा । फाल्गुन में पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी या हस्त इन प्रत्येक मास के नक्षत्र के दिन अथवा अमावस के दिन गुरुवार हो तो वर्षा अच्छी हो । ऐसा ज्ञान जगद्गुरु गच्छाधिपति श्री होर विनयने कहा है । २७२ से २७६॥
पौष आदि चार महीनों में गर्भकारक योगों के दिन को छोड़कर दूसरे समय पशुओं के चरण अंकित हो जाय ऐसी वर्षा हो तो अकाल वर्षा कही जाती है यह अनिष्टकारक है || २७७ ॥ बिजली गर्जना और वर्षा ये तीन प्रकार के दृष्टि के उत्पातों से सात रात्रि तक कुछ भी ( शुभकार्य ) न करे ॥ २७८ ॥ पौष में तीन दिन, माघ में दो दिन, फाल्गुनमें एक दिन और चैत्रमें दो घड़ी वर्षा आदि उत्पात होने के पीछे त्याग दें ॥ २७६॥ माघ में तीन दिन, फाल्गुन में दो दिन चैत्रमें एक दिन, वैशाखमें दो
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"Aho Shrutgyanam"