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तिथिफलकथनम्
(३८३)
कृष्टया वा परिवेषेण तस्यां धान्यस्य संग्रहः ॥२६३॥ तुर्ये मासेऽथवा पौषे लाभस्तस्यानविक्रयात् । प्राषाढी निर्मला नेष्टा बार्दलाच्छादिता शुभा ॥२६४॥ नैर्मल्याद्धान्यसायं पञ्चमे मासि लाभदम् । श्रावणी निर्मला श्रेष्ठा साभ्रत्वे घृतसङ्कहः ॥२६५॥ विक्रयाद घृततैलादे-र्लाभो मासे तृतीयके । पूर्णा भाद्रपदे साभ्रा शुभा धान्यस्य विक्रयात् ॥२६॥ प्राश्विनी निर्मला पूर्णा शुभाय वादलोदये। संगृाधान्यं विक्रेयं द्वितीये मासि लाभदम् ॥२६७॥ कार्तिक्यां वादलबलाद घृतधान्यादिसंग्रहः।। विक्रयः पञ्चमे मासे चैत्रे वा लाभदायकः ॥२६८॥ पूर्णिमा मार्गशीर्षस्य कार्तिकीव विभाव्यताम् । पौषी सवादला श्रेष्ठा धातुसंग्रहलाभदा ॥२६॥ या परिवेष (घेरा) हो तो धान्यका संग्रह करना ॥२६३॥ चौथे या पौष मासमें उसको बेचनेसे लाभ होगा । आषाढ पूर्णिमा निर्मल हो तो अशुभ और बादलसे आच्छादित हो तो शुभ है ॥२६४॥ यदि निर्मल हो तो धान्य का संग्रह करने से पांचवें महीने लाभदायक हो । श्रावण पूर्णिमा निर्मल हो तो श्रेष्ठ है, और बादल सहित हो तो घी का संग्रह करना ॥ २६५॥ घी और तेल तीसरे महीने बेचने से लाभ हो । भाद्रपद पूर्णिमा को बादल होतो शुभ है, धान्यको बेच देना चाहिये ॥२६६॥ आश्विन पूर्णिमा निर्मल हो तो अच्छा है, यदि बादल सहित हो तो धान्य का संग्रह कर दूसरे महीने बेचे तो लाभ हो ॥२६७॥ कार्तिक पूर्णिमा बादल सहित हो तो घी और धान्य का संग्रह करना, पांचवें महीने या चैत्रमासमें बेचे तो लाभदायक हो ॥ २६८ ॥ मार्गशीर पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमाकी तरह विचार लेना । पौष पूर्णिमाको बादल हो तो श्रेष्ठ है धातुका संग्रहसे लाभ
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