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ता पढमा दो मासा होइ सुभिक्खं सुहं न संदेहों । दो उवरि पुणो मासा सस्सविणासेण दुक्कालो || २५७॥ अहँ पहरा चउरो अहवा जइ होइ उत्तरा जोगो । सरसाणं ता हाणी रसाण तह तिलदग्वाणं ॥ २५८ ॥ में द्वादशपूर्णिमाविचार:
त्रस्य पूर्णिमास्यां हि निर्मलं गगर्न शुभम् । तहिने ग्रहणं तारा-पात भूकम्पवृष्टयः ॥ २५९ ॥ रजोवृष्टिः परिवेषो विद्युत्केतृदयादिना । उत्पातेन च सङ्ग्राहां धान्यं धातुव्ययादितः ॥ २६० ॥ विक्रये सप्तमे मासे भाद्रे विगुणलाभदम् । वैशाख्यामीदृशे चिहे कार्पासस्य महर्घता ॥२३१॥ गोधूममुद्रमाषादेः सङ्ग्रहो लाभकारणम् । क्रियागुणत्वेन मासे भाद्रपदे भवेत् ॥ २३२॥ ज्येष्ठस्य पूर्णिमाऽनभ्रा शुभाय कथिता बुधैः ।
महीने में धान्यका विनाश होनेसे दुष्काल हो ॥ २५६-५७॥ आठ या चार प्रहर तक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो तो धान्य रस तिल आदि द्रव्य -इन का विनाश हो ॥२५८॥ इति फाल्गुनमासः ॥
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चैत्र मास की पूर्णिमा को आकाश निर्मल हो तो शुभ है, यदि उस दिन ग्रहण हो, तारा का पात, भूकंप, वृष्टि ॥ २५६ ॥ रज: (धूली) की वर्षा, चंद्रमाका परिवेष (घेरा) बिजली चमके और केतु का उदय, ऐसे उत्पात हो तो धातु आदि बेचकर धान्य का संग्रह करना उचित है | २६० ॥ इस को माद्रपद में या सातवें महीने बेचने से दूना लाभ हो । वैशाख पूर्णिमा को भी ऐसे चिह्न हो तो कपास महँगे हो ॥ २६९ ॥ गेहूँ मूंग उड़द आदि का संग्रह करने से लाभदायक है, भाद्रपद में दूने लाभसे वे ॥२६२॥. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा स्वच्छ हो तो अच्छी है और वर्षा
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