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तिथिफलकथनम्
(३८१) त्रिभिर्मासै: सुभिक्षाय सोमवारादसौ जने ॥२५॥ फाल्गुने प्रथमे पक्षे वारुणं प्रतिपदिने । भोगानुसाराद्वर्षस्य स्वरूपं च प्ररूपयेत् ।।२५।। फाल्गुने कृत्तिकायुक्तं सप्तम्यादिकपञ्चकम् । श्वेतपक्षे सुभिक्षाय भाद्रे जलदवृष्टये ॥२५२॥ तिथिकुलकेफग्गुण पुष्णिमदिवसे पुब्बाफरगुणि हविन णक्खत्तं । चत्तारि वि पुहाओ ता चउरो माससुभिक्खं ॥२५३॥ बे पुहरा अव महाणक्खत्तं होइ कहवि देवाला। ता जाणह दुवे मासा होइ महग्धं ण संदेहो ॥२५४॥ अह पुण्णा तद्दिवसे होइ महारिक्खयं जया कहवि । सत्तारि विमासा खलु ता जाणह विडरं कालं ॥२५॥ मह पुण्णिम दो पुहरा पुव्वाफग्गुणी हविज णखत्तं । उवरिं उत्तरफग्गुणी दो पुहरा होइ जइ कहवि ॥२५॥ दायक हो और सोमवार युक्त हो तो मुभिक्ष हो !! २५० ॥ फाल्गुन के प्रथम पक्ष में प्रतिपदाको शतभिषा नक्षत्र हो तो उसके भोगानुसार वर्ष का स्वरूप जानना ॥ २५१ ॥ फाल्गुन शुक्ल में सप्तमी आदि पांच तिथिको कृत्तिका नक्षत्र हो तो मुभिक्ष होता है और भाद्रपद में वर्षा होती है ॥ २५२ ॥ तिथिकुलक में फाल्गुन पूर्णिमा का विचार इस तरह कहा है- फाल्गुन पुर्णिमाके दिन चारोंही प्रहर पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र हो तो चार महीने सुभिक्ष रहें ॥२५३॥ यदि दैवयोगसे दो प्रहर मघा नक्षत्र हो तो दो महीने म.गे हो इसमें सन्देह नहीं ॥२५.४|| यदि उस दिन मघानक्षत्र पूर्ण हो तो चारोंही महीने बड़ा काल हो ॥२५५॥ दो प्रहर प्रथम पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र हो और आगे दो प्रहर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो तो पहले दो महीने मुभिक्ष और सुग्ख हो इसमें संदेह नहीं और पीछे के दो
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